रवीन्द्र त्रिपाठी

कभी हिन्दी के कवि केशव दास ने लिखा था – केशव केसन अस करी जस अरिहु ना कराहि, चंद्रबदनी मृगलोचनि बाबा कही कही जाही। केशव का उम्र के आखिरी दौर में खूबसूरत लड़कियां बाबा कह के बुलाने लगी थी। इससे वे उदास हो गए थे। ये पंक्तियां उन्होंने बालों के सफेद होने से उपजे दुख को लेकर लिखा था। या क्या पता वे भी असमय गंजे हो गए हों। बहरहाल, गंजापन एक युवा पुरुष एक दुख तो है ही। हालाकि कुछ लोग ‘ बाल्ड इज ब्यूटीफुल का नारा भी लगते है। पर वो तो एक छलावा है। गंजापन का दुख उससे पूछिए जिसके सिर पर बाल नहीं है।

‘बाला ‘ इसी समस्या को लेकर बनी है। कानपुर का रहनेवाला एक नौजवान है बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (आयुष्मान खुराना) । बचपन में उसके सिर पर घने घने बाल थे। उसे इसपर नाज था। उसके साथ एक लड़की भी थी लतिका। वो कुछ ज्यादा सांवली थी। बाला उसे चिढ़ाता था। पर विधि का विधान देखिए। जवानी आई तो बाला के सिर से बाल नहीं रहे। उसे लोग चिढ़ाने लगे। वो खुद भी अपने आप से चिढ़नने लगा। हजार जतन कर लिए बाल उगाने के। पर बाल नहीं उगे। ऊपर से नौकरी मिली तो ऐसी कंपनी में जो फेयरनेस क्रीम बेचने में लगी थी। यहां एक और खूबसूरत लड़की परी मिश्रा (यमी गौतम )भी काम करती है जिसपर बाला का दिल आ जाता है। परी भी उसे चाहने लगती है। तब तक बाला अपने सिर पर विग लगा चुका होता है। अब जब दोनों की शादी तय होने को होती है तो बाला को लगता है कि कहीं ऐसा ना हो कि शादी के बाद विग की बात जानकर परी उससे खफा हो जाए। आखिर परी भी ब्यूटी कॉन्सस लड़की है। ऐसे में बाला क्या करे इसी मसले पर फिल्म टिकी है।

‘बाला ‘ एक कॉमेडी है। भरपूर। हालाकि बीच में संजीदा भी हो जाती। बल्कि फिल्म की शुरुआत ही संजीदगी से होती है जहां बाला और लतिका का बचपन दिखाया गया है। फिर बाला जब बड़ा होता है तो उसके साथ गंजेपन का हादसा होता है और लतिका वकील बन जाती है। दोनों की नोकझोक चलती रहती है। ये सारी स्थितियां कॉमेडी के लिए मसाले का काम करती रहती हैं। बाला फिल्मी गीतों का भी बड़ा शौकीन है। अमिताभ बच्चन से लेकर शाहरुख खान का फैन है। उनकी नकले भी उतरता रहता है। ये सब भी मिलकर कॉमेडी को बढ़ा देते हैं और हंसी रुकने का नाम ही नहीं लेती।

आयुष्मान आजकल लगातार एक से एक अच्छी फिल्में कर रहे हैं और ‘बाला ‘भी इसी सिलसिले में एक ताज़ा कड़ी है। पर एक अत्यधिक सांवली लड़की के किरदार में भूमि पेडणेकर का काम भी अच्छा है। भूमि ने जिस लतिका के किरदार को निभाया है उसकी मौजूदगी की वजह से बाला एक ऐसी फिल्म बन जाती है जो ये बताती है कि जिंदगी में अपूर्णताए होती है। कोई गंजा होता है तो कोई बहुत ज्यादा सांवला। आदमी को इन्हीं अपूर्णताओं के साथ जीना आना चाहिए। अगर कोई अपूर्णताओं को कमजोरी बना लेगा तो जीना कठिन हो जाएगा।

‘ बाला ‘ फिल्म की तुलना पिछले हफ्ते रिलीज हुईं फ़िल्म उजड़ा चमन से होगी जो मोटे तौर पर इसी विषय, यानी गंजेपन से जुड़ी है। इस बारे में फिलहाल इतना ही कहना उचित होगा कि बाला कुछ मामलों में एक बेहतर फिल्म है।

बाला ३*
निर्देशक – अमर कौशिक
कलाकार – आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यमी गौतम, सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा