Yogini Ekadashi Vrat: हर महीने में एकादशी आती है। लेकिन आषाढ़ मास की एकादशी को काफी महत्व दिया जाता है। जिसे योगिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रखा जाता है। मान्यतानुसार इस व्रत को रखने से 88 हजार ब्राह्राणों को भोजन करने के बराबर पुण्य मिलता है। इस बार योगिनी एकादशी 17 जून को मनाई जायेगी। जानिए इसका महत्व…
मोक्षदात्री मानी जाती है यह एकादशी: प्रचलित कथा के अनुसार स्वर्गलोक की अलकापुरी नामक नगर में कुबेर नाम का एक राजा रहता था। वह भगवान शिव का बड़ा उपासक था। आंधी आये तूफान आये कोई भी बाधा उन्हें भगवान शिव की पूजा करने से नहीं रोक सकती थी। भगवान शिव के पूजन के लिये उनके लिये हेम नामक एक माली फूलों की व्यवस्था करता था। वह हर रोज पूजा से पहले राजा कुबेर को फूल देकर जाया करता।
हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी से बहुत प्रेम करता था, वह बहुत सुंदर स्त्री थी। एक दिन क्या हुआ कि हेम पूजा के लिये पुष्प तो ले आया लेकिन रास्ते में उसने सोचा अभी पूजा में तो समय है क्यों न घर चला जाये उसने आते-आते अपने घर की राह पकड़ ली। घर आने बाद अपनी पत्नी को देखकर वह कामास्कत हो गया और उसके साथ रमण करने लगा। उधर पूजा का समय बीता जा रहा था और राजा कुबेर पुष्प न आने से व्याकुल हुए जा रहे थे। जब पूजा का समय बीत गया और हेम पुष्प लेकर नहीं पंहुचा तो राजा ने अपने सैनिकों को भेजकर उसका पता लगाने की कही।
सैनिकों ने लौटकर बता दिया कि महाराज वह महापापी है महाकामी है अपनी पत्नी के साथ रमण करने में व्यस्त था। यह सुनकर तो कुबेर का गुस्सा सांतवें आसमान पर पंहुच गया। उन्होंनें तुरंत हेम को पकड़ लाने की कही। अब हेम कांपते हुए राजा कुबेर के सामने खड़ा था। कुबेर ने हेम को क्रोधित होते हुए कहा कि हे नीच महापापी तुमने कामवश होकर भगवान शिव का अनादर किया है मैं तूझे शाप देता हूं कि तू स्त्री का वियोग सहेगा और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी होगा। अब कुबेर के शाप से हेम माली भूतल पर पंहुच गया और कोढ़ग्रस्त हो गया।
स्वर्गलोक में वास करते-करते उसे दुखों की अनुभूति नहीं थी। लेकिन यहां पृथ्वी पर भूख-प्यास के साथ-साथ एक गंभीर बिमारी कोढ़ से उसका सामना हो रहा था उसे उसके दुखों का कोई अंत नजर नहीं आ रहा था लेकिन उसने भगवान शिव की पूजा भी कर रखी थी उसके सत्कर्म ही कहिये कि वह एक दिन घूमते-घूमते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पंहुच गया। इनके आश्रम की शोभा देखते ही बनती थी। ब्रह्मा की सभा के समान ही मार्कंडेय ऋषि की सभा का नजारा भी था। वह उनके चरणों में गिर पड़ा और महर्षि के पूछने पर अपनी व्यथा से उन्हें अवगत करवाया।
अब ऋषि मार्केंडय ने कहा कि तुमने मुझसे सत्य बोला है इसलिये मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं। आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष को योगिनी एकादशी होती है। इसका विधिपूर्वक व्रत यदि तुम करोगे तो तुम्हारे सब पाप नष्ट हो जाएंगें। अब माली ने ऋषि को साष्टांग प्रणाम किया और उनके बताये अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत किया। इस प्रकार उसे अपने शाप से छुटकारा मिला और वह फिर से अपने वास्तविक रुप में आकर अपनी स्त्री के साथ सुख से रहने लगा।