नवदुर्गा को समर्पित नवरात्र का ये पावन पर्व चार अक्तूबर तक रहेगा। पांच अक्तूबर को दशहरा है। इन नौ दिनों में माता रानी के नौ स्वरूपों की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। नौ दिन तक चलने वाली शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा कर भक्त माता को प्रसन्न करते हैं। मान्यता है कि मां दुर्गा ने ये नौ स्वरूप अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए धारण किए थे। नौ स्वरूपों की पूजा के दौरान नवदुर्गा के बीज मंत्रों का जाप करना भक्तों के लिए कल्याणकारी सिद्ध होता है।
मां दुर्गा के नौ अवतार

मां शैलपुत्री

पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने की वजह से इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है। देवी शैलपुत्री की पूजा से चंद्र दोष समाप्त होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां ब्रह्मचारिणी
जिन्होंने तपस्या द्वारा शिव को पाया था। देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा से मंगल दोष खत्म होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां चंद्रघंटा
जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है। देवी चंद्रघंटा की पूजा से शुक्र ग्रह का प्रभाव बढ़ता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां चन्द्रघंटा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कूष्मांडा
वे अपने अंदर ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं। मां कूष्मांडा की पूजा से कुंडली में सूर्य ग्रह मजबूत होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां स्कंदमाता
उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है। देवी स्कंदमाता की पूजा से बुध ग्रह का दोष कम होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कात्यायनी
यज्ञ की अग्नि में भस्म होने के बाद महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने महर्षि कात्यायन के यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। देवी कात्यायनी की पूजा से बृहस्पति ग्रह मजबूत होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां कालरात्रि
मां पार्वती हर तरह के संकट का नाश करने वाली हैं। देवी कालरात्रि की पूजा से शनिदोष खत्म होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां कालरात्रि रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां महागौरी
माता का वर्ण पूरी तरह से गौर है। देवी महागौरी की पूजा से राहु का बुरा प्रभाव खत्म होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां महागौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
मां सिद्धिदात्री
जो भक्त पूरी तरह से उनको समर्पित रहता है, उसे मां हर प्रकार की सिद्धि देती हैं। देवी सिद्धिदात्री की पूजा से केतु का असर कम होता है।
स्तुति मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥

कलश स्थापना

शारदीय नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। ऐसे में इस दिन घर के पूजा मंदिर में उत्तर-पूर्व दिशा में करना शुभ रहता है। माता के लिए पूजा-चौकी पर कलश स्थापित करें। सबसे पहले कलश रखने वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। इसके बाद लकड़ी की चौकी पर लाल रंग से स्वास्तिक बनाएं और उस पर कलश स्थापित करें। कलश में आम, बरगद, गूलर, पीपल, पाकड़ के पल्लव रखें। इसके बाद कलश को जल या गंगाजल से भरें। कलश में एक सुपारी, कुछ सिक्के, दूर्वा, हल्दी की एक गांठ जरूर रखें। कलश के मुख पर एक नारियल लाल वस्त्र से लपेट कर रखें। संभव हो तो अक्षत से अष्टदल बनाकर उस पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करें

नवरात्र अवधि में सप्तशती का पाठ प्रतिदिन करने से सभी कामनाओं की पूर्ति के साथ ही सामूहिक कल्याण, पापनाश, भयनाश, विश्वरक्षा, महामारी नाश, आरोग्य, सौभाग्य प्राप्ति, धन प्राप्ति, पुत्र प्राप्ति, बाधा शांति और मोक्ष की प्राप्ति के साथ सभी प्रकार से रक्षा की प्राप्ति हो सकती है। जिस कामना से हम मां की आराधना करेंगे, उसकी अवश्य प्राप्ति होती है।

मां का भोग

प्रतिपदा को गाय के घी का भोग लगाएं। इसी तरह द्वितीया को मिश्री का, तृतीया को गाय के दूध का, चतुर्थी को मालपुए का, पंचमी को पके केले का, षष्ठी को मधु का, सप्तमी को गुड़ का, अष्टमी को नारियल का और नवमी को धान के लावा का भोग लगाया जाना चाहिए।