शास्त्री कोसलेन्द्रदास
श्रावण मास संवत्सर का हृदय है। लोकभाषा में यही सावन मास महादेव को सर्वाधिक प्रिय है। सावन में आशुतोष भगवान शंकर का पूजन, आराधन और रुद्राभिषेक से विशेष अर्चन होता है।
महादेव के लिए अभिषेक
जलधाराप्रिय: शिव: इस शास्त्र वाक्य के अनुसार भगवान शंकर को निर्मल जल की धारा सबसे प्रिय है। वायुपुराण में स्पष्ट लिखा है कि जो व्यक्ति किसी भी पदार्थ का दान करे या वह सारे धन-धान्य, स्वर्ण और औषधियों से भले युक्त हो पर इन सबके साथ ही यदि वह महादेव को जल चढ़ाता है और सावन मास में श्रद्धायुक्त होकर रुद्राभिषेक करता है तो वह उसी शरीर से भगवान शिव को प्राप्त कर लेता है। इसलिए हरेक व्यक्ति को पूरे सावन मास में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करना चाहिए।

मुख्यत: महादेव का अभिषेक जल से ही करना चाहिए। परंतु अनेक बार कार्य की सिद्धि के लिए भक्तगण दूध, पंचामृत, आम्ररस, गन्ने का रस, नारियल जल एवं तीर्थजल आदि से भी भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। शिवसंहिता के अनुसार तो जो व्यक्ति ब्रह्मचर्य का पालन करता हुआ निर्मल मन से श्राावण मास में प्रतिदिन रुद्राभिषेक करता है, सारे देवता उसके वश में हो जाते हैं। रुद्राभिषेक करते समय विद्वान ब्राह्मणों से शुक्ल-यजुर्वेद की रुद्राष्टाध्यायी का पाठ करवाना चाहिए। ये वे वेद मंत्र हैं, जिनके उच्चारण मात्र से ही भूतभावन भगवान शंकर प्रसन्न हो जाते हैं।

पूजा करें विधान से
वैसे तो भगवान शंकर के पूजन में किसी विशेष विधि-विधान की आवश्यकता नहीं है फिर भी कर्मकांड के अनेक ग्रंथों में शिव पूजन विधि का विस्तार से वर्णन है। पूजा करने वाला पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके बैठे और शुद्ध जल से अपना पवित्रीकरण करे। आचमन करने के बाद प्राणायाम करके अपना नाम और गोत्र बोलकर संकल्प करे। मस्तक पर त्रिपुंड्र तिलक लगाने के बाद हाथ में अक्षत और पुष्प लेकर सबसे पहले प्रथमपूज्य भगवान गणपति का पूजन करे।

माता पार्वती का पूजन
गणपति के पूजन के बाद माता पार्वती का पूजन कर स्वामी कार्तिकेय और शिववाहन नंदीश्वर का पूजन करें। शिव पंचायतन के पूजन के साथ ही शिवमित्र कुबेर, उनके द्वारपाल कीर्तिमुख और उनके अलंकार सर्पों का पूजन करें। ध्यान करने के पश्चात नर्मदेश्वर शिवलिंग के सामने पुष्प व बिल्वपत्र छोड़कर उन्हें आसन देना चाहिए। महादेव को पाद्य, अर्घ्य और आचमन देने के बाद शुद्ध जल से स्नान करवाना चाहिए। फिर दूध, दही, घी, शहद और शर्करा से स्नान करवाकर पंचामृत से भी स्नान करवाना चाहिए। इसके बाद यदि संभव हो तो यजुर्वेद के रुद्रसूक्त के 16 मंत्रों से भगवान शिव का दुग्धाभिषेक करना चाहिए।

स्नानोपरांत महादेव को सूत से निर्मित वस्त्र चढ़ाकर उन्हें यज्ञोपवीत समर्पित करें। महादेव को चंदन व भस्म से तिलक लगाकर जल से धुले हुए अक्षत चढ़ाएं। भगवान शिव को अनेक तरह के पुष्प व पुष्पमाला चढ़ाकर यथासंख्य बिल्वपत्र व धतूरे के फूल समर्पित करने चाहिए। यह अवश्य है कि शास्त्रों में महादेव को भांग जैसी निंदित वस्तु चढ़ाने का विधान नहीं है। अत: भांग कदापि भूलकर भी नहीं चढ़ानी चाहिए। इस मंत्र से धुले हुए बिल्वपत्र चढाएं।

दूर्वांकुर चढ़ाकर महादेव को सुगंधित द्रव्य, अबीर, गुलाल, सिंदूर व इत्र चढ़ाएं। तत्पश्चात धूप-दीप दिखाकर महादेव को भोग लगाएं। नैवेद्य समर्पण के बाद फल और तांबूल और फिर अंत में पूजा की संपूर्णता के लिए दक्षिणा भेट करें। भगवान की आरती करने के बाद आधी प्रदक्षिणा करें और साष्टांग प्रणाम करें। तत्पश्चात पूजन में हुए दोषों से बचने के लिए क्षमायाचना करें। भगवान शंकर समस्त ज्ञान-सुखों के प्रदाता हैं। उनकी आराधना हमें लौकिक फल तो देती ही है अलौकिक मोक्ष भी प्रदान करती है।