हिंदू धर्म में किसी व्यक्ति की मौत होने के बाद उसके शव को जलाने का परंपरा है। यह परंपरा काफी समय से चली आ रही है। हिंदू धर्म में इसे अंतिम संस्कार या अन्तयोष्टि कहा जाता है। हिंदू धर्म में कुल सोलह संस्कार माने गए हैं। शव दहन की क्रिया को अंतिम संस्कार कहा गया है। लेकिन यह महज शव दहन तक ही सीमित नहीं है। अंतिम संस्कार में शव को लकड़ी के ढेर के ऊपर लिटाया जाता है। इसके बाद मृतात्मा को मुखाग्नि दी जाती है। और फिर संपूर्ण शरीर को अग्नि के हवाले कर दिया जाता है। शव दहन हो जाने के बाद मृतक की अस्थियां रख ली जाती हैं। इसे किसी नदी(आमतौर पर गंगा) में प्रवाहित किया जाता है। इसके बाद श्राद्धकर्म और पिंडदान की प्रक्रिया सम्पन्न होती है।

शास्त्रों में कहा गया है कि मानव शरीर की रचना पांच तत्वों से मिलकर हुई है। ये हैं- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। माना जाता है कि शव दहन करने से व्यक्ति का मृत शरीर इन्हीं पंच तत्वों में मिल जाता है। इससे व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद भी इस ब्रंहाण्ड का हिस्सा बना रहता है। शव दहन को व्यवहारिक दृष्टि से भी उपयुक्त माना गया है। शव दहन का कार्य मृत व्यक्ति के परिवार, रिश्तेदार और अन्य लोगों के द्वारा एकजुट होकर किया जाता है।

शव दहन या अंतिम संस्कार की एक निश्चित प्रक्रिया बताई गई है। अंतिम संस्कार को ठीक ढंग से निभाने के लिए इसका पालन किया जाना अनिवार्य माना गया है। मृत्यु के बाद सबसे पहले भूमि को गोबर से लिपने के लिए कहा गया है। इसके बाद कुश बिछाकर व्यक्ति का शव उस पर रखा जाता है। मृत व्यक्ति के मुख में स्वर्ण तथा पंचरत्न डालने का भी विधान है। इससे व्यक्ति को उसके पाप कर्मों से मुक्ति मिलने की मान्यता है। फिर, पुत्र या पौत्र द्वारा मरे हुए व्यक्ति को कंधा दिया जाता है। कंधा देने की प्रक्रिया में कुछ लोग भी शामिल होते हैं। अंत में बड़े पुत्र या पौत्र द्वारा मृत शरीर को मुखाग्नि दी जाती है।