भगवान शंकर के बारे में कहा जाता है कि वे आदि और अनंत हैं। शिव जी ब्रह्मांड के कण-कण में व्याप्त हैं। शिव जी के भक्तों का मानना है कि वे भोले हैं, यानी कि बड़ी ही जल्द प्रसन्न हो जाते हैं। और अपने भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। इन सबके बीच क्या आप जानते हैं कि भगवान शंकर की पूजा में शंख का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है? जी हां, आज हम आपको इसकी वजह बताने जा रहे हैं। शंख के संदर्भ में ऐसा भी कहा जाता है कि भूलकर भी इसका इस्तेमाल भोले बाबा की पूजा में नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि शिव की पूजा में शंख का इस्तेमाल करने से वे क्रोधित हो सकते हैं। इसलिए इससे बचने की सलाह दी जाती है।
शिवपुराण में भगवान शंकर की पूजा में शंख का इस्तेमाल नहीं करने की वजह बताई गई है। इसके मुताबिक शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था। शंखचूड़ दैत्यराज दंभ का पुत्र था। दंभ ने कठिन तपस्या करके भगवान विष्णु से तीनों लोकों के लिए अजेय और महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा था। साथ ही शंखचूड़ ने तपस्या करके ब्रम्हा जी से अजेय होने का वरदान हासिल कर लिया था। इसके कुछ समय बाद ही शंखचूड़ ने तीनों लोकों पर अपना स्वामित्व स्थापित कर लिया। शंखचूड़ के अत्याचारों से मनुष्य से लेकर देवता भी परेशान हो उठे।
देवताओं ने इसके लिए शिव जी से मदद मांगी। लेकिन शंखचूड़ को श्रीकृष्ण कवच और तुलसी के पतिव्रत धर्म की प्राप्ति की वजह से शिव जी उसका वध नहीं कर पाए। इस पर विष्णु जी ने ब्राह्मण का रूप धरकर शंखचूड़ से श्रीकृष्णकवच दान में ले लिया। साथ ही शंखचूड़ का रूप धरकर तुलसी के शील का हरण भी कर लिया। इस मौके पर शिव जी ने शंखचूड़ को अपनी त्रिशूल से भस्म कर दिया। बताते हैं कि शंखचूड़ की हड्डियों से शंख की जन्म हुआ। इसलिए शंख का इस्तेमाल शिव जी की पूजा में नहीं होता।