Sawan 2023: सावन का पवित्र माह चल रहा है। हर कोई बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न तरह से पूजा-अर्चना कर रहा है। सावन मास में शिव जी के साथ मां पार्वती की पूजा की जाती है। इसके साथ ही नंदी बाबा की पूजा करना शुभ माना जाता है। नंदी का नाम लेते ही सबसे पहले भगवान शिव का वाहन के बारे में सोचते हैं। नंदी कैलाश के द्वारपाल भी हैं, जो शिव का निवास है। संस्कृत में नंदी का अर्थ प्रसन्नता या आनंद है। नंदी को शक्ति-संपन्न और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। शिव की मूर्ति के सामने या शिव मंदिर के बाहर शिव के वाहन नंदी की मूर्ति स्थापित होती है। लेकिन शायद ही आप ये बात होंगे कि नंदी धर्म के भी प्रतीक हैं। जिसका एक अच्छा उदाहरण सेंगोल राजदंड में विराजित होना है। जानिए आखिर क्यों नंदी को माना जाता है धर्म का प्रतीक..?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत के नए संसद भवन में राजदंड ‘सेंगोल’ की स्थापना की थी।  तमिलनाडु के सदियों पुराने मठ के आधीन महंतों की मौजूदगी में इस स्थापित किया गया है। ‘सेंगोल’ राजदंड को सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं, बल्कि राजा के सामने हमेशा न्यायशील बने रहने और जनता के प्रति समर्पित रहने का भी प्रतीक रहा है। अगर आपने कभी सेंगोल को गौर से देखा होगा, तो इस राजदंड के ऊपर नंदी महाराज विराजमान है।

क्यों माना जाता है नंदी को धर्म रक्षक?

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि नंदी कैसे धर्म का प्रतीक है। साधारण शब्दों में कहें, तो नंदी धर्म के रक्षक है यानी वह सनातन धर्म की रक्षा भी करते हैं और उन्होंने इसे दुनिया के कोने-कोने में पहुंचाने के लिए काफी कार्य किए है। इसी के कारण उन्हें हिंदू धर्म के 18 सिद्ध विद्वानों में से एक माना जाता है।

नंदी भगवान बाबा भोलेनाथ के गण ही नहीं थे बल्कि वह विद्वान भी थे। उन्हें अगैमिक और तांत्रिक ज्ञान का दिव्य ज्ञान था, जो उन्हें भगवान शिव से सिखाया था।  इतना ही नहीं इन्हें नंदी नाथ सम्प्रदाय के आठ शिष्यों का मुख्य गुरु माना जाता है। ये आठ शिष्य थे- सनक, सनातन, सनन्दन, सनत्कुमार, तिरुमुलर, व्याघ्रपाद, पतंजलि और शिवयोग मुनि। नंदी महाराज ने संसार में  ज्ञान को फैलाने के लिए इन आठ शिष्यों को दुनिया की आठ अलग-अलग दिशाओं में भेजा था।

क्या है नंदी के खासियत?

अब नंदी महाराज के रंग की बात करें, तो वह भी न्याय से संबंधित है। नंदी बैल का सफेद रंग पवित्रता और न्याय का प्रतीक माना जाता है। नंदी महाराज को सनातन धर्म का काफी ज्ञान था। जिसे दुनियाभर के कोने-कोने में फैलाने का काफी प्रयास किया था और वह आज भी अपने रंग, मुंद्रा आदि से धर्म की रक्षा कर रहे हैं। अब इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि आखिर क्यों नंदी महाराज को धर्म का प्रतीक कहा जाता है। शिव जी और नंदी का हिंदू धर्मग्रंथों और कला से जुड़ाव बहुत प्रारंभिक रहा है जिसे भारतीय संस्कृति से देखा जा सकता है। आज गाय के अलावा बैल को भी पवित्र पशुओं में से एक माना जाता है।

शिवलिंग के सामने क्यों बैठाएं जाते हैं नंदी?

शिवलिंग के सामने बैठे नंदी को इस बात का संकेत माना जाता है कि हर व्यक्ति को प्रकृति से विमुख हो जाना चाहिए और अपना सारा ध्यान केवल भगवान की ओर लगाना चाहिए।
 
नंदी यानी बैल हमेशा चार पैरों पर बैठे हुए ही दिखते हैं। इसे स्थिरता का प्रतीक माना जाता है और वह सत्य ,धर्म, शांति और प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है।

नंदी इन चीजों से इस बात का संकेत देना चाहते हैं कि वह इन चार चीजों को पाकर ही आत्मज्ञान पा सकता है और अपनी आत्मा को परमात्मा की पूजा में लगा सकता है। यही एक मनुष्य जन्म का उद्देश्य और लक्ष्य  होना चाहिए। एक व्यक्ति जीवन के किसी न किसी पड़ाव में विचलित हो जाता है। ऐसे में अगर व्यक्ति का ज्ञान-इंद्रिय और कर्म-इंद्रिय पर पूर्ण नियंत्रण होगा, तो वह जीवन के हर एक समस्या, चुनौती को आसानी से पार करके सुखी जीवन जी सकता है।

कौन है नंदी?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदी को ऋषि शिलाद का पुत्र माना जाता है। उन्होंने अमरत्व और भगवान शिव के आशीर्वाद से एक संतान का वरदान पाने के लिए कठोर तपस्या की और नंदी को अपने पुत्र के रूप में प्राप्त किया। वहीं अन्य किंवदंतियों का कहना है कि नंदी का जन्म शिलाद द्वारा किए गए यज्ञ से हुआ था। नंदी भगवान शिव के एक प्रबल भक्त के रूप में विकसित हुए। इसके बाद उन्होंने शिवजी के द्वारपाल के साथ-साथ उनकी सवारी बनने के लिए कठोर तपस्या की थी। .