माता सरस्वती की पूजा-अर्चना बड़ी ही श्रद्धा के साथ की जाती है। मान्यता है कि सरस्वती जी की पूजा करने से ज्ञान की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि सरस्वती जी अपने भक्तों के जीवन का अंधकार दूर करके उन्हें प्रकाश(ज्ञान) की ओर लेकर जाती हैं। इससे व्यक्ति को अपने जीवन का सही अर्थ समझ में आता है। और वह समाज कल्याण में लग जाता है। माता सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है। सरस्वती जी को विद्या, संगीत और बुद्धि की देवी भी कहा गया है। कहा जाता है कि सरस्वती जी के आशीर्वाद से समस्त संशयों का निवारण हो जाता है। सरस्वती जी की आराधना करने से सभी सिद्धियों की प्राप्ति होती है।

माता सरस्वती को संगीत शास्त्र की अधिष्ठात्री देवी कहा गया है। ताल, स्वर, लय, राग-रागिनी इत्यादि को इन्हीं की देन माना गया है। ऐसे में यह समझा जा सकता है कि सरस्वती जी का इस सृष्टि की खूबसूरती में कितना अहम योगदान है। सरस्वती जी का स्मरण कुल सात प्रकार से सुरों से किया जा सकता है। इसी वजह से उन्हें स्वरात्मिका भी कहा गया है। पुराणों के मुताबिक सरस्वती जी से सप्तविध स्वरों का ज्ञान हासिल होता है। इसके कारण ही उन्हें सरस्वती कहा जाता है।

सरस्वती जी वीणावादिनी हैं। उनके वीणा वादन से संगीतमय जीवन जीने की प्रेरणा हासिल होती है। वीणा वादन करते समय मानव शरीर एकदम स्थिर हो जाता है। इस दशा में व्यक्ति का शरीर लगभग समाधि को प्राप्त हो जाता है। इसे एक प्रकार की साधना माना गया है। कहते हैं कि वीणा से निकलने वाली धुन मानव जीवन में मधुरता घोलती है। देवी भागवत में भी सरस्वती जी के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसके अनुसार ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ही सरस्वती जी को पूजते हैं। इस प्रकार से मानव द्वारा सरस्वती जी को पूजन सौभाग्य माना गया है।