भवगान शिव के दिव्य नृत्य के बारे में हर किसी ने सुना होगा। इसे शिव के तांडव नृत्य के रूप में भी जाना जाता है। लेकिन ऐसा क्या है कि शिव के दिव्य नृत्य को तांडव कहा जाता है? आज हम इसी बारे में विस्तार से बात करने वाले हैं। बता दें कि तांडव शब्द ‘तंदुल’ से बना हुआ है। इसका अर्थ है- उछलना। तांडव करते से समय ऊर्जा और शक्ति से उछलना होता है। इससे दिमाग और मन के शक्तिशाली होने की बात कही गई है। मालूम हो कि तांडव नृत्य करने की अनुमति केवल पुरुषों को ही है। महिलाओं को तांडव नृत्य करने के लिए मना किया गया है।
शिव तांडव स्तोत्र: ऐसा कहा जाता है कि भगवान शिव जब रौद्र रूप में होते हैं तब उनकी विशेष उपासना की जाती है। शांत शिव को मनाना काफी आसान माना जाता है। लेकिन जब शिव रूठ जाते हैं तो उन्हें मनाने का एक ही तरीका शेष बचता है। इसके लिए शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है। हालांकि शिव तांडव स्तोत्र का पाठ कुछ विशेष परिस्थितियों में ही करने के लिए कहा गया है। कहते हैं कि जब कोई बीमारी बिल्कुल भी ठीक ना हो रही हो उस दशा में शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए।
इसके साथ ही जब किसी समस्या के समाधान में सारे तंत्र-मंत्र विफल हो जाएं तब शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। जीवन में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने के लिए भी शिव तांडव स्तोत्र का पाठ उत्तम माना गया है। मालूम हो कि तांडव नृत्य के साथ शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करना बड़ा ही शुभ फलदायी माना गया है। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने के कुछ समय बाद तक भी भगवान शंकर का ध्यान करते रहना चाहिए। माना जाता है कि इसी विधि से कई गई उपासना बहुत ही प्रभावी होती है। इससे शिव जी बड़ी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।