हिंदू धर्म के शास्त्रों में मांसाहार करने के लिए मना किया गया है। शास्त्रों में मांसाहार की तुलना राक्षसी भोजन से की गई है। कहा जाता है कि मांसाहार करने वाले व्यक्ति का स्वभाव राक्षस जैसा हो जाता है। धार्मिक ग्रंथों में इस सृष्टि के समस्त जीवों को एक समान माना गया है। प्रत्येक जीव के प्रति सहानुभूति रखने की बात कही गई है। इसके साथ ही धार्मिक ग्रथों में जीव हत्या को पाप बताया गया है। इस आधार पर भी कहा जाता है कि मांसाहार नहीं करना चाहिए। कहते हैं कि मांसाहार करने से व्यक्ति पापी हो जाता है। और उसके पापों का फल जरूर मिलता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति मांसाहार से दूर रहता है, उससे देवी-देवता प्रसन्न रहते हैं। और उसकी मनोकामनाएं जरूर पूरी करते हैं।
हिंदुओं के प्रमुख काव्य ग्रंथ महाभारत में भी मांसाहार का उल्लेख किया गया है। इसमें मांसाहार करने की कटु निंदा की गई है। महाभारत में मांसाहार की तुलना अश्वमेध यज्ञ से की गई है। इसमें वर्णित है कि जो व्यक्ति लगातार 100 साल तक अश्वमेध यज्ञ करता है और जो व्यक्ति अपने जीवन में मांसाहार नहीं करता, उनमें से मांसाहार के त्यागी को ही विशेष पुण्यकारी माना गया है। यानी कि महाभारत में मांसाहार न करने की तुलना किसी पुण्य कार्य से की गई है।
शास्त्रों में कहा गया है कि प्रत्येक जीव में भगवान का अंश वास करता है। ऐसे में किसी भी जीव की हत्या भगवान के एक अंश की हत्या है। इस प्रकार से मांसाहार करने वाला व्यक्ति भगवान की नजरों में पापी बन जाता है। कहते हैं कि मांसाहार करने वाले व्यक्ति की पुकार भगवान कभी नहीं सुनते। श्रीमद्भागवत में मांसाहार को तामसिक भोजन बताया गया है। इसके मुताबिक मांसाहार करना किसी कुकर्म के समान है। कहते हैं कि मांसाहार करने से व्यक्ति की संवेदना मर जाती है। ऐसा व्यक्ति समाज की भलाई के बारे में नहीं सोच पाता।