श्रीमद्भागवत के अनुसार नारायण जो कि भगवान विष्णु के वास्तवित स्वरूप हैं, को न मिटाया जा सकता है और न ही नष्ट किया जा सकता है। भगवान विष्णु ही समय-समय पर अवतार लेकर धरती पर प्रकट हुए और दुष्टों का नाश किया। भगवान विष्णु के दस अवतार के बारे में हमने सुना होगा। इन्हीं दस अवतारों में से एक है कच्छप (कछुआ) अवतार। क्या आप जानते हैं कि आखिर भगवान विष्णु को कछुए का अवतार क्यों लेना पड़ा? इनका यह अवतार लेने के पीछे क्या कारण था? आगे भगवान विष्णु के कच्छप अवतार के बारे में जानते हैं।
भगवान विष्णु के कच्छप अवतार की कड़ी समुद्र मंथन से जुड़ी हुई मानी जाती है। यह कथा समुद्र के अमृत के प्याले से भी जुड़ी है। जिसे पीने के लिए देवताओं और दानवों में विवाद उत्पन्न हुआ। जिसके परिणामस्वरूप देव-असुर संग्राम हुआ। कहते हैं कि राजा बलि के राज्य में दैत्य, असुर दानव बहुत अधिक बलशाली हो गए थे। उन्हें शुक्राचार्य जैसे महान गुरु की शक्ति प्राप्त थे। इसी बीच दुर्वशा ऋषि के श्राप से इंद्र देव के शक्ति खत्म हो गई थी। जिस कारण दैत्य बलि का राज तीनों लोकों में फैल गया था। सभी देवता उनसे भयभीत रहते थे। इस स्थिति के निवारण का उपाय केवल भगवान विष्णु जी ही बता सकते थे। इसलिए ब्रह्मा जी के साथ सभी देवी-देवता विष्णु जी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी विपदा सुनाई।
विष्णु देव ने कहा- यह संकट काल का समय है लेकिन इसे मैत्रीपूर्ण भाव से बिताना चाहिए। इस समय दैत्यों से मित्रता कर लेनी चाहिए और क्षीर सागर को मथकर अमृत निकालकर उसे पी लेना चाहिए। यह काम दैत्यों की सहायता से आसानी से हो जाएगा। साथ ही अमृत पीकर आपलोग अमर हो जाएंगे। भगवान विष्णु के आदेश के अनुसार इंद्र ने समुद्र मंथन की बात राजा बलि को बताई। जिसके बाद दैत्य राज इंद्र ने राजा बलि से सामझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिए तैयार हुए। फिर मन्द्राचल पर्वत को मथनी और बसुकी नाग को नेती बनाया गया। तब भगवान विष्णु ने कूर्म यानि कछुए का अवतार लेकर मन्द्राचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर उसका आधार बन गए।


