आपने ईष्टदेव के बारे में सुना होगा। ऐसा कहा जाता है कि हर एक व्यक्ति का अपना ईष्टदेव होता है। और हर किसी को अपने ईष्टदेव की पूजा जरूर करनी चाहिए। मान्यता है कि ईष्टदेव की पूजा करने से जीवन के सारे दुख समाप्त हो जाते हैं। साथ ही व्यक्ति को उसके प्रयासों में सफलता मिलने लगती है। कहते हैं कि सच्चे मन से ईष्टदेव की पूजा-अर्चना करने से व्यक्ति का भाग्यपक्ष मजबूत होता है। इससे व्यक्ति को उसके जीवन में कई तरह के लाभ हासिल होते हैं। माना जाता है कि ईष्टदेव के नाराज होने से व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति का पारिवारिक जीवन भी बुरी तरह से प्रभावित होता है।

कुछ लोग ईष्टदेव का निर्धारण व्यक्ति के मुख्य ग्रह के आधार पर करते हैं। कहा जाता है कि व्यक्ति को उसके मुख्य ग्रह से संबंधित देव की पूजा जरूर करनी चाहिए। लेकिन ज्योतिष शास्त्र में ग्रहों का ईष्टदेव से कोई संबंध नहीं बताया गया है। इसका मतलब यह भी है कि किसी व्यक्ति की कुंडली के आधार पर उसके ईष्टदेव का निर्धारण नहीं किया जा सकता है। ज्योतिष में ग्रहों के ईष्टदेव से संबंध को नकारा गया है।

ऐसा माना जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति का ईश्वर के किसी खास स्वरूप की ओर आकर्षण होता है। ईश्वर के उसी स्वरूप को उस व्यक्ति का ईष्टदेव कहा जाता है। यानी कि ईष्टदेव का निर्धारण व्यक्ति की श्रद्धा और भक्ति के आधार पर होती है। यह श्रद्धा और भक्ति जन्म से ही तय होने लगती है। सामान्य जन-जीवन में यह साफ तौर पर देखने को मिलता है कि हर एक व्यक्ति का ईश्वर के किसी स्वरूप की ओर आकर्षण होता है। इसीलिए कोई व्यक्ति राम तो कोई शिव तो कोई हनुमान और अन्य देवता की पूजा करता है।