रत्न शास्त्र में 84 उपरत्न और 9 रत्नों का वर्णन मिलता है। ये रत्न किसी न किसी ग्रह का प्रतिनिधित्व करते हैं। यहां हम बात करने जा रहे हैं माणिक्य रत्न के बारे में। जिनको अंग्रेजी में रूबी कहते हैं। रूबी सभी रत्नों में से सबसे खूबसूरत रत्न माना जाता है। ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार रूबी रत्न को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। क्योंकि इसका संबंध ग्रहों के राजा सूर्य से होता है। इन्हीं के प्रताप से मानव जीवन का विकास होता है। वहीं कुंडली में अगर सूर्य देव कमजोर अवस्था में हो तो मनुष्य को माणिक्य रत्न धारण करना चाहिए। आइए जानते हैं धारण करने की विधि और पहनने के लाभ…
माणिक्य पहनने के लाभ
- माणिक्य रत्न नेतृत्व करने की क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित होता है।
- आत्मविश्वास को बढ़ाने में माणिक्य का बहुत बड़ा रोल होता है। क्योंकि इस रत्न का संबंध सूर्य देव से है।
- अगर किसी को हड्डियों से संबंधित कोई रोग है तो वह माणिक्य धारण कर सकता है। माणिक्य हड्डियों को मजबूत करने में मददगार साबित होता है।
- रूबी रत्न इंजीनियरों, सुनारों, अभिनेताओं, कलाकारों, सरकारी अधिकारियों स्टॉक ब्रोकर को धारण करना शुभ साबित होता है।
- साथ ही माणिक्य धारण करन से सूर्य प्रभावित रोग( ह्रदय रोग, आंख के रोग, पित्त विकार) रोगों से मुक्ति मिलती है।
ये लोग कर सकते हैं माणिक्य धारण
– ज्योतिष अनुसार मेष, सिंह और धनु लग्न के लोग माणिक्य धारण कर सकते हैं।
-कर्क, वृश्चिक और मीन लग्न में माणिक्य रत्न मिलेजुले परिणाम देता है।
-अगर जातक को ह्रदय, हड्डी और नेत्र रोग है तो भी वह माणिक्य पहन सकता है।
-अगर धन भाव, दशम भाव, नवम भाव, पंचम भाव, एकादश भाव में सूर्य उच्च के स्थित हैं तो भी माणिक्य धारण कर सकते हैं।
-माणिक्य के साथ गोमेद या लहसुनिया और नीलम धारण न करें अन्यथा नुकसान हो सकता है।
इस विधि से करें माणिक्य धारण:
– रत्न शास्त्र के अनुसार माणिक्य गुलाबी या लाल रंग का उत्तम माना जाता है।
-माणिक्य का वजन कम से कम 6 से सवा 7 रत्ती का होना चाहिए। लेकिन हर व्यक्ति को अपने शरीर के वजन के अनुसार धारण करना चाहिए।
-रत्न शास्त्र अनुसार तांबा या सोने के धातु में माणिक्य को धारण करना सबसे शुभ माना जाता है।
-सूर्योदय होने के एक घंटे बाद माणिक्य रत्न को पहन सकते हैं।
-माणिक्य धारण करने से पहिले अंगूठी को गाय के दूध और गंगाजल से शुद्ध करें। उसके बाद मंदिर के सामने बैठकर एक माला सूर्य देव के मंत्र ऊं सूर्याय नम: का जाप करें और फिर अंगूठी को पहन लें।