आचार्य चाणक्य बेहद ही बुद्धिमान और कुशल राजनीतिज्ञ थे। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में न सिर्फ व्यक्ति को सफलता हासिल करने के तमाम रास्ते बताए हैं, बल्कि व्यक्ति को कहां रुकना और रहना चाहिए इसको लेकर भी अपनी किताब ‘चाणक्य नीति’ में काफी कुछ बताया है, आइए जानते हैं…
यस्मिन् देशे न सम्मानो न वृत्तिर्न च बान्धवाः।
न च विद्या ss गमः कश्चित् तं देशं परिवर्जयेत् ।।
आचार्य चाणक्य के द्वारा लिखित अष्टम श्लोक में कहा गया है कि जिस देश में आदर-सम्मान नहीं और न ही आजीविका का कोई साधन है , जहां कोई बंधु-बांधव, रिश्तेदार भी नहीं तथा किसी प्रकार की विद्या और गुणों की प्राप्ति की संभावना भी नहीं, ऐसे देश को छोड़ ही देना चाहिए। ऐसे स्थान पर रहना उचित नहीं।
किसी अन्य देश अथवा किसी अन्य स्थान पर जाने का एक प्रयोजन यह होता है कि वहां जाकर कोई नयी बात, नयी विद्या, रोजगार और नया गुण सीख सकेंगे, परंतु जहां इनमें से किसी भी बात की संभावना न हो, ऐसे देश या स्थान को तुरंत छोड़ देना चाहिए.
श्रोत्रियो धनिकः राजा नदी वैद्यस्तु पञ्चमः।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न तत्र दिवसं वसेत् ।।
वहीं नवम श्लोक में आचार्य चाणक्य ने लिखा है कि जहां श्रोत्रिय अर्थात वेद को जानने वाला ब्राह्मण, धनिक, राजा, नदी और वैद्य ये पांच चीजें न हों, उस स्थान पर मनुष्य को एक दिन भी नहीं रहना चाहिए।
धनवान लोगों से व्यापार की वृद्धि होती है। वेद को जानने वाले ब्राह्मण धर्म की रक्षा करते हैं। राजा न्याय और शासन-व्यवस्था को स्थिर रखता है । जल तथा सिंचाई के लिए नदी, आवश्यक है जबकि रोगों से छुटकारा पाने के लिए वैद्य की आवश्यकता होती है। चाणक्य कहते हैं कि जहां पर ये पांचों चीजें न हों, उस स्थान को त्याग देना ही श्रेयस्कर है। लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता ।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात् तत्र संस्थितिम् ।।
आचार्य चाणक्य ने प्रथम अध्याय के दसवें श्लोक में कहा है कि जहां लोकयात्रा अर्थात जीवन को चलाने के लिए आजीविका का कोई साधन न हो, व्यापार आदि विकसित न हो, किसी प्रकार के दंड के मिलने का भय न हो, लोकलाज न हो, व्यक्तियों में शिष्टता, उदारता न हो अर्थात उनमें दान देने की प्रवृत्ति न हो, जहां ये पांच चीजें विद्यमान न हों, वहां व्यक्ति को निवास नहीं करना चाहिए।