हिमाचल प्रदेश में देश के करोड़ो हिंदुओं की आस्था के केंद्र ज्वालदेवी मंदिर में जल रही प्राकृतिक ज्योति का रहस्य वैज्ञानिक आज भी नहीं खोज पाए हैं। ना घी, न तेल और न ही बाती, फिर सदियों से कसिए धधक रही है ये ज्वाला? ना आग ना धुआं और न ही ताप, फिर कैसे हजारों सालों से उबाल रहा है ये पानी? मां की कोई प्रतिमा नहीं, आकार नहीं फिर कैसे अनंत कल से यह आस्था का केंद्र है? ये श्रद्धा है, चमत्कार है या फिर कोई अनसुलझी रहस्य। आज हम आपको हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित ज्वालदेवी मंदिर में सदियों से जल रही इस ज्वाला के रहस्य के बारे में बता रहे हैं। आगे हम इसे जानते हैं।

कहते हैं कि ज्वालदेवी का यह मंदिर माता के अन्य मंदिरों की तुलना में अनोखा है। क्योंकि यहां पर किसी मूर्ति के पूजा नहीं होती हैं। बल्कि पृथ्वी के गर्भ से निकल रही नौ ज्वालाओं की पूजा होती है। यहां पृथ्वी के गर्भ से नौ अलग-अलग जगह से ज्वालाएं निकल रहीं हैं। जिसके ऊपर ही मंदिर बना दिया गया है। इन नौ ज्योतियों को महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अंबिका और अंजी देवी के नाम से जाना जाता है। इस मंदिर का इतिहास बताता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा भूमिचंद ने करवाया था। बाद में पंजाब के राजा रंजीत सिंह और संसारचंद ने 1835 में इस मंदिर का पूर्ण निर्माण करवाया था।

ज्वालादेवी मंदिर हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में स्थित है। इस मंदिर को ज्योतावली मंदिर भी कहा जाता है। इस मंदिर को खोजने के श्रेय पांडवों को जाता है। इसकी गिनती माता के प्रमुख शक्तिपीठों में होती है। मान्यता है कि देवी सती की जीभ इसी जगह पर गिरी थी। इस जगह के बारे में एक कथा अकबर और माता के परम भक्त ध्यानु भगत से जुड़ी हुई है।

हिमाचल के नादौन ग्राम निवासी माता का एक भक्त ध्यानु भगत एक हजार यात्रियों सहित माता के दर्शन के लिए जा रहा था। इतना बड़ा दल देखकर अकबर के सिपाहियों ने चांदनी चौक, दिल्ली में उन्हें रोक दिया। साथ ही अकबर के दरबार में ले जाकर ध्यानु भक्त को पेश किया। बादशाह ने पूछा- तुम इतने लोगों को साथ में लेकर कहां जा रहे हो। ध्यानु ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया मैं ज्वाला माई के दार्शन के लिए जा रहा हूं। मेरे साथ जो लोग हैं वो भी माता के भक्त हैं। अकबर ने यह सुनकर ज्वाला माई के बारे में पूछा कि ये कौन हैं? और वहां जाने से क्या होगा।

ध्यानु भक्त ने उत्तर दिया कि ज्वाला माई संसार का पालन करने वाली माता हैं। वे भक्तों के सच्चे हृदय से की गई प्रार्थना स्वीकार करती हैं। उनका प्रताप ऐसा है कि उनके स्थान पर बिना तेल और बाती के सदियों से ज्योत जल रही है। श्रद्धालु प्रतिवर्ष ज्वालदेवी के दर्शन हेतु जाते हैं। अकबर ने कहा कि अगर तुम्हारी बंदगी पाक है तो देवी मां तुम्हारी इज्जत रखेगी। अगर वह तुम जैसे भक्तों का ख्याल नहीं रख सके तो तुम्हारी इबादत बेकार है। या तो वह देवी हैं या यकीन के काबिल नहीं हैं, या फिर तुम्हारी इबादत झूठी है। इम्तहान के लिए हम तुम्हारे घोड़े की गर्दन अलग कर देते हैं। तुम अपनी देवी से कहकर उसे दुबारा जिंदा करवा लेना।

इस प्रकार अकबर के आदेश से घोड़े की गर्दन काट दी गई। ध्यानु भक्त ने कोई उपाय न देखकर बादशाह से एक माह की अवधि तक घोड़े के सिर और धड़ को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की। अकबर ने ध्यानु भक्त की बात मान ली और उसे यात्रा करने की अनुमति भी मिल गई। बादशाह से विदा होकर ध्यानु भक्त अपने साथियों सहित माता के दरबार में पहुंचा। स्नान-पूजन आदि करने के बाद रात भर जागरण किया। सुबह आरती के समय ध्यानु भक्त ने प्रार्थना की कि मतेश्वरी आप तो अंतर्यामी हैं। बादशाह अकबर मेरी भक्ति की परीक्षा के रहा है। मेरे लाग रख लो, मेरे घोड़े को अपनी कृपा व शक्ति से जीवित कर देना। कहते हैं कि अपने भक्त की लाज रखते हुए ज्वाला माता ने घोड़े को जीवित कर दिया।