गोधूलि बेला को शास्त्रों में अत्यधिक शुभ माना गया है। कहते हैं कि इस मुहूर्त में किए गए कुछ कार्य शुभ फलदायी होते हैं। वैसे तो बहुत सारे लोग गोधूलि बेला के बारे में जानते होंगे। साथ ही कई लोगों ने देखा भी होगा कि संध्या काल में शादी की जाती है। लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं जो अब तक इस बात से अंजान होंगे कि गोधूलि बेला होती क्या है? आखिर इस समय को शुभ मुहूर्त क्यों माना जाता है? साथ ही इस समय में शादी करना शुभ क्यों माना गया है और किस उद्देश्य से विवाह किए जाते हैं? जानते हैं इसे।

जब सूर्य अस्त होने वाला हो और जंगल से गाय आदि पशु चरकर वापस अपने बसेरे की ओर जाते हों तो वह काल गोधूलि कहलाती है। इसके अलावा जब गाय चरकर वापस अपने ठिकाने पर जा रही हो और उनके पैरों की धूल उड़कर सूरज की लालिमा को ढक रही हो तो उस समय जो काल होता है वह गोधूलि कहा जाता है। शास्त्रों में गोधूलि बेला को विवाह-शादी के कार्यों के लिए शुभ माना गया है। वह कब जब विवाह मुहूर्त में क्रूर ग्रह, युति वेद, मृत्यु बाण आदि दोषों की शुद्धि होने पर विवाह की शुद्ध लग्न और समय न निकल रहा हो तो गोधूलि बेला में विवाह करना चाहिए।

कहते हैं कि लग्न आदि सभी प्रकार के दोषों के खत्म करने की शक्ति गोधूलि बेला में है। आचार्य नारद के अनुसार सूर्योदय से जो सातवीं लग्न होती है वही लग्न गोधूलि बेला कहलाता है। पीयूष धारा के अनुसार सूर्य के आधे अस्त होने से 48 मिनट का समय गोधूलि काल कहलाती है। मान्यता है कि इस बेला में शादी-विवाह करने से वैवाहिक जीवन में सदैव खुशियां बनी रहती है।