Govardhan Darshan: भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं से मथुरा और वृंदावन भरा हुआ है। ये दोनों की जगह धार्मिक के साथ-साथ सांस्कृतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। कान्हा को चाहने वाले लाखों भक्त हर रोज यहां पर आते हैं।  यहां आकर कान्हा की विभिन्न लीलाओं के बारे में सोच कर ही हर कोई भाव-विभोर हो जाता है। अगर आप भी मथुरा-वृंदावन की यात्रा पर निकले हैं, तो गिरिराज पर्वत के बिना आपकी यात्रा अधूरी मानी जाती है। मथुरा से करीब 21 किमी दूर गोवर्धन पर्वत स्थित है। यहां पर भी श्री कृष्ण की कई लीलाएं की है। जिसका साक्षी ये पर्वत आज भी मौजूद है। कहा जाता है कि चौबीस कोसों की गिरिराज की परिक्रमा करने मात्र से व्यक्ति को हर एक दुख-दर्द से मुक्ति मिल जाती है और भी कृष्ण के साथ राधा रानी के प्रिय बन जाते हैं। अगर आप भी यहां पर गिरिराज के दर्शन करने के साथ परिक्रमा करने का जा रहे हैं, तो कभी भी ये चीज वहां से लेकर न आएं। इस बारे में स्वयं गर्ग संहिता नामक शास्त्र में लिखा गया है। आइए जानते हैं गोवर्धन पर्वत जा रहे हैं, तो क्या चीज बिल्कुल भी न लेकर आएं।

सभी तीर्थों में श्रेष्ठ है गिरिराज पर्वत

गर्ग संहिता में श्री गिरिराज खण्ड के अन्तर्गत श्री नारद बहुलाश्व-संवाद में ‘श्रीगिरिराजके तीर्थों का वर्णन’ नामक सातवाँ अध्याय में इसकी व्याख्या की गई है। उनके मुताबिक, ये गोवर्धन पर्वत सभी तीर्थों में से श्रेष्ठ है। वृंदावन साक्षात् गोलोक है, तो गिरिराज को उसका मुकुट बताकर सम्मानित किया गया है। ये वो पर्वत है, जो साक्षात पूर्ण ब्रह्म का छत्र बन गए थे। इसलिए इससे श्रेष्ठ कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। इतना ही नहीं यहां पर श्री कृष्ण ग्वालों के साथ क्रीडा करते थे। इसके साथ ही श्री कृष्ण के मुकुट का स्पर्श पाकर ये शिला मुकुट के चिह्न से सुशोभित हो गयी, उस शिला का दर्शन करने मात्र से मनुष्य देव शिरोमणि हो जाता है। 

हर पाप से मिल जाती है मुक्ति

श्री गिरिराज खंड के ग्यारहवें अध्याय में नारद मुनि जी  ने कहा कि जो व्यक्ति गिरिराज के दर्शन कर लेता है, तो वह स्वप्न में भी कभी प्रचंड यमराज का दर्शन नहीं करता है।  वह जीवन में देवराज इंद्र के अनुसार, सुख भोगता है। इसके साथ ही नंदराज के समान परलोक में शांति का अनुभव करता है।

ऐसे हुई थी गोवर्धन की उत्पत्ति

गर्ग संहिता के गिरिराज खंड के अनुसार, गिरिराज को श्री कृष्ण का मुकुट कहा गया है। इसके साथ ही गोवर्धन श्री कृष्ण के साथ-साथ श्री राधा रानी को अपि प्रिय है। गर्ग संहिता के गोकुलखंड के तीसरे अध्याय में जब सभी देवी-देवताओं के कहने पर श्री विष्णु धरती पर आने लगे, तो उन्होंने राधा रानी से चलने के लिए कहा, तो स्वयं श्री राधारानी ने श्री कृष्ण से कहा कि  जहां पर वृंदावन, यमुना और गोवर्धन पर्वत नहीं है, तो मुझे वहां पर सुख नहीं मिलेगा। इसके बाद ही श्री कृष्ण ने अपने गोकुल धाम से पृथ्वी पर ये सब चीजें भेजी थी।  इसलिए राधारानी को गिरिराज अति प्रिय है।

श्री कृष्ण और राधा रानी से अपने शरीर से गोलेक की संरचना की थी। जैसे भगवान के नाभि कमल से सहस्रों कमल प्रकट हुए, जो हरि लोक के सरोवरों में में सुशोभित थे। इसके साथ ही श्रीहरि की दोनों भुजाओं से ‘श्रीदामा’ आदि आठ पार्षद उत्पन्न हुए। कलाइयों से ‘नन्द’ और कराग्र भाग से ‘उपनन्द’ प्रकट हुए। समस्त गोपगण श्री कृष्ण के रोम से उत्पन्न हुए हैं। श्रीकृष्ण के मन से गौओं तथा धर्मधुरंधर वृषभों का प्राकट्य हुआ। इसी प्रकार श्रीकृष्ण के वक्षःस्थल से गिरिराज प्रकट हुए थे।

क्या गोवर्धन से ले जाना चाहिए शिला?

श्री कृष्ण ने स्वयं कहा है कि गिरिराज की विधिवत पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। अगर आप गोवर्धन पूजा के लिए नहीं आ सकते हैं, को घर में ही गोबर से विशालकाय गोवर्धन बनाकर पूजा कें। इसके साथ ही अगर आप अपने घर  शिला ले जाना चाहते हैं, तो उतने ही भार का सोना चढ़ाना पड़ेगा, अन्यथा आपको भयंकर नरक भोगना पड़ेगा। इसलिए व्यक्ति को कभी भी अपने घर में गिरिराज की शिला बिल्कुल नहीं लानी चाहिए। इससे श्री कृष्ण के साथ-साथ राधा रानी रुष्ट हो जाती है, जिससे आपके जीवन में नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।