Tulsi Ji Mata Aarti Lyrics In Hindi: हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का विशेष महत्व है। जिसको लोग हर साल पूरी श्रद्धा के साथ मनाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी माता का विवाह कराने का विधान है। जो इस साल 13 नवंबर को है। मान्यता है इस दिन देवी तुलसी के साथ श्री हरि की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। वहीं आपको बता दें कि तुलसी विवाह करते समय तुलसी जी की आरती का बेहद जरूरी होता है। वरना पूजा अधूरी मानी जाती है। आइए जानते हैं तुलसी जी और शालिग्राम जी की आरती…
तुलसी माता की आरती (Tulsi Mata Ki Aarti)
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता.
सब जग की सुख दाता, सबकी वर माता.. मैय्या जय तुलसी माता..
सब योगों से ऊपर, सब रोगों से ऊपर.
रज से रक्ष करके, सबकी भव त्राता. मैय्या जय तुलसी माता..
बटु पुत्री है श्यामा, सूर बल्ली है ग्राम्या.
विष्णुप्रिय जो नर तुमको सेवे, सो नर तर जाता. मैय्या जय तुलसी माता..
हरि के शीश विराजत, त्रिभुवन से हो वंदित.
पतित जनों की तारिणी, तुम हो विख्याता. मैय्या जय तुलसी माता..
लेकर जन्म विजन में, आई दिव्य भवन में.
मानव लोक तुम्हीं से, सुख-संपति पाता। मैय्या जय तुलसी माता..
हरि को तुम अति प्यारी, श्याम वर्ण सुकुमारी.
प्रेम अजब है उनका, तुमसे कैसा नाता. मैय्या जय तुलसी माता..
हमारी विपद हरो तुम, कृपा करो माता.
जय जय तुलसी माता, मैय्या जय तुलसी माता..
शालिग्राम जी की आरती (Shaligram Ki Aarti)
शालिग्राम सुनो विनती मेरी.
यह वरदान दयाकर पाऊं..
प्रात: समय उठी मंजन करके.
प्रेम सहित स्नान कराऊँ..
चन्दन धूप दीप तुलसीदल.
वरन-वरण के पुष्प चढ़ाऊँ..
तुम्हरे सामने नृत्य करूँ नित.
प्रभु घंटा शंख मृदंग बजाऊं..
चरण धोय चरणामृत लेकर.
कुटुंब सहित बैकुण्ठ सिधारूं..
जो कुछ रुखा सूखा घर में.
भोग लगाकर भोजन पाऊं..
मन वचन कर्म से पाप किये.
जो परिक्रमा के साथ बहाऊँ..
ऐसी कृपा करो मुझ पर.
जम के द्वारे जाने न पाऊं..
माधोदास की विनती यही है.
हरी दासन को दास कहाऊं..
भगवान विष्णु की आरती (Om Jai Jagdish Hare Aarti)
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥