गणेश चतुर्थी प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। शुक्ल पक्ष में आने वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं। इसलिए माघ मास की विनायक चतुर्थी 8 फरवरी, शुक्रवार यानि आज है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं। चूंकि यह चतुर्थी हर माह मनाई जाती है, इस वजह से भगवान गणेश के कई रूपों की पूजा होती है। इसे संकट हारा, अंगारकी चतुर्थी और गणेश चतुर्थी आदि के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन गणेश के भक्त उपवास रखते हैं। भगवान गणेश को बल, बुद्धि और विवेक का देवता माना जाता है। आगे जानते हैं विनायक गणेश चतुर्थी की पूजा-विधि और व्रत कथा।

पूजा-विधि: विनायक गणेश चतुर्थी भगवान गणेश का जन्मदिवस है और इस दिन को भारत के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों धूमधाम से मनाया जाता है। विनायक चतुर्थी का व्रत बहुत कठीन होता है। इस व्रत में केवल फलों का ही सेवन किया जा सकता है। इसके अलावा मूंगफली, साबूदाना आदि भी खाया जा सकता है। यह उपवास चंद्रमा को देखकर तोड़ा जाता है। इस दिन जब आप उपवास रखें तो भगवान गणेश की कथा जरूर सुनें। ऐसा करने से ही आपकी पूजा सफल होगी। इस उपवास को करने वाले व्यक्ति को सुबह नहा धोकर लाल रंग का कपड़ा पहनना चाहिए। पूजा के दौरान फल-फूल आदि चढ़ाएं और गणेश की अराधना करें। गणेश को मोदक का भोग जरूर लगाएं। पूरे विधि विधान से पूजा करने के बाद गणेश मंत्र ॐ गणेशाय नमः का जाप करें। यह जाप 108 बार करें।

शुभ मुहूर्त: भगवान गणेश को सुबह, दोपहर और शाम में से किसी भी समय पूजा जा सकता है। परन्तु गणेश-चतुर्थी के दिन दोपहर का समय गणेश-पूजा के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। दोपहर के दौरान गणेश-पूजा का समय विनायक चतुर्थी पूजा मुहूर्त कहलाता है।

व्रत कथा: पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिए चौपड खेलने को कहा। भगवान शंकर चौपड खेलने के लिए तो तैयार हो गए। लेकिन इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाया, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते हैं। परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिए तुम बताना की हम में से कौन हारा और कौन जीता।

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया। खेल तीन बार खेला गया और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गईं। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई। और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने और किचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिए नाग कन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।

एक साल बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। बालक ने कहा कि, हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों। बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया। और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई। उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गईं। देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताए अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया। इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिए जो नाराजगी थी वो स्वयं समाप्त हो गई।

पार्वती जी के मन में स्वयं महादेवजी से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ पहुंची। वहां पहुंचकर पार्वतीजी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय किया जिसके फलस्वरूप मैं आपके पास भागी-भागी आ गई हूं। शिवजी ने गणेश व्रत का इतिहास उनसे कह दिया। यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें। कार्तिकेय ने यही व्रत विश्वामित्रजी को बताया। विश्वामित्रजी ने व्रत करके गणेशजी से जन्म से मुक्त होकर ‘ब्रह्म-ऋषि’ होने का वर मांगा। गणेशजी ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। इस प्रकार श्री गणेशजी चतुर्थी व्रत को मनोकामना व्रत भी कहा जाता है। इस व्रत को करने से वो सबकी मनोकामना पूरी करते है। इस तरह पूजन करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।