Holi 2018 Vrat Vidhi, Katha: फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। इस वर्ष होली 1 मार्च और 2 मार्च को मनाई जाएगी। होली रंगों के साथ सामाजिक और धार्मिक त्योहार माना जाता है। इस पर्व को उत्साह और उमंग से मनाने की परंपरा है। इस दिन को अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक माना जाता है। इसी के साथ होली को एकता, प्रेम और सद्भाव का पर्व भी माना जाता है। पूर्णिमा की तिथि पर सूर्य अस्त होने के बाद प्रदोष काल में होलिका दहन किया जाता है। होलिका की पवित्र अग्नि में नई फसल को भून कर प्रसाद के रुप में ग्रहण किया जाता है। इस दिन नई फसल के लिए भगवान से प्रार्थना की जाती है, जिससे घर में सुख-समृद्धि बनी रहे। होली वाले दिन कई लोग व्रत करते हैं और माना जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान के प्रति आस्था मजबूत होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का पर्व मनाया जाता है। वेदों, पुराणों और शास्त्रों के अनुसार माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था जो अपने बल के कारण अपने आप को भगवान मानने लगा था। उस राक्षस ने अपने राज्य में आदेश दिया था कि जो भी विष्णु का पूजन करेगा उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। सभी लोग राक्षस के अत्याचारों से परेशान थे। भगवान ने अपने भक्तों के उद्धार के लिए प्रह्लाद के रुप में हिरण्यकश्यिपु के यहां जन्म लिया। उस बालक को सभी वेदों, पुराणों का ज्ञान बहुत ही जल्दी हो गया था। प्रह्लाद को हिरण्यकश्यिपु ने समझाया कि वो विष्णु भक्ति को छोड़ दे लेकिन उसने नहीं माना।
प्रह्लाद को स्वयं उसके पिता ने दंडित करना शुरु कर दिया वो हर दिन प्रयास से प्रह्लाद को मारने का प्रयत्न करता लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। एक दिन राक्षसी होलिका ने अपने भाई को बताया कि उसे ब्रह्म देव से कभी आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त है जिससे उसकी मृत्यु नहीं हो सकती है। हिरण्यकश्यिपु की बहन राक्षसी होलिका अपने भतीजे भक्त प्रह्लाद को लेकर आग में बैठ गई। भक्त प्रहलाद नारायण का नाम जप रहा था। होलिका आग में भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित बाहर आ गया। भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और उन्होनें हिरण्यकश्यिपु का वध कर दिया। भक्त प्रह्लाद के लिए होलिका दहन की परंपरा की जाती है। होली के दिन वैर और उत्पीड़न की अग्नि जलाई जाती है।

