Vat Savitri Vrat 2022 : वट सावित्री का व्रत हर सुहागिन महिला के लिए खास होता है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को रखने से पति को लंबी आयु की प्राप्ति होती है। अखंड सौभाग्य और संतान सुख पाने की कामना के साथ महिलाएं ये व्रत करती हैं। बिहार, यूपी और झारखंड में इस पर्व की अहमियत बहुत ज्यादा है। इस दिन महिलाए बरगद यानी वट वृक्ष की पूजा करती हैं और परिक्रमा करती हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक ज्येष्ठ मास की कृष्ण पक्ष के अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। साल 2022 में महिलाएं ये व्रत 30 मई को रखेंगी। आइए जानते हैं विस्तार से –
वट सावित्री मुहूर्त 2022 (Vat Savitri 2022 Shubh Muhurat):
- वट सावित्री व्रत सोमवार, मई 30, 2022 को
- अमावस्या तिथि प्रारम्भ – मई 29, 2022 को शाम 02 बजकर 55 मिनट से आरंभ
- अमावस्या तिथि समाप्त – मई 30, 2022 को शाम 04 बजकर 59 मिनट पर समाप्त
वट सावित्री के दिन कैसे करें पूजा
सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रतियों को नव वस्त्र धारण कर अच्छी तरह श्रृंगार करना चाहिए। अब सभी पूजन सामग्रियों को इकट्ठा कर किसी बांस से बनी टोकरी या पीतल के पात्र में रख लें। फिर पहले घर में पूजा करें, सूर्य भगवान को जल चढ़ाएं। अब जो वट वृक्ष सबसे नजदीक हो वहां जाकर जल अर्पित करें। फिर देवी सावित्री को वस्त्र व सोलह श्रृंगार चढाएं। फल-फूल अर्पित करने के बाद वट वृक्ष को पंखा झेलें। रोली से पेड़ की परिक्रमा करें और फिर सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा ध्यानपूर्वक सुनें। इसके बाद दिन भर व्रत रखें।
जानें वट सावित्री की पूजन सामग्री की सूची
इस पूजा के दौरान माता सावित्री को अर्पित करने के लिए आपको कुछ चीजों की जरूरत होगी। सबसे जरूरी उनकी तस्वीर, लाल धागा, कलश, मिट्टी का दीपक, मौसमी फल, पूजा के लिए लाल कपड़े, सिंदूर-कुमकुम और रोली, चढ़ावे के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी व सोलह श्रृंगार के सामान हैं। इसके अलावा, वट वृक्ष के लिए बांस का पंखा और रोली चाहिए होगा। साथ ही, पीतल का लोटा भी रखें जिससे जल चढ़ा सकें।
क्या हैं वट सावित्री व्रत की मान्यताएं
मान्यता है कि इस दिन माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प और श्रद्धा की बदौलत ही यमराज द्वारा अपने मृत पति सत्यवान के प्राण वापस पाए थे। माना जाता है कि सावित्री ने वट वृक्ष के नीचे ही तपस्या की थी, इसलिए इस व्रत का नाम वट सावित्री पड़ा। सनातन संस्कति के अनुसार बरगद के पेड़ में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं का वास होता है।
