Tulsidas Jayanti Quotes: हर साल सावन के महीने में सप्तमी तिथि को तुलसीदास जयंती मनाई जाती है। इस साल 27 जुलाई, सोमवार को गोस्वामी तुलसीदास की जयंती मनाई जा रही है। भगवान श्री राम के अनन्य भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस के रचियता हैं। इसके अलावा उन्होंने हनुमान चालीसा, कवितावली, गीतावली, विनयपत्रिका, जानकीमंगल और बरवै रामायण जैसे कुल 12 ग्रंथों की रचना की है। सन् 1554 में जन्में गोस्वामी तुलसीदास की गिनती हिंदी सर्वश्रेष्ठ कवियों में की जाती है। गोस्वामी तुलसीदास ने रामभक्ति के द्वारा न केवल अपना ही जीवन कृतार्थ किया बल्कि‌ समूची मानव जाति को श्रीराम के आदर्शों से जोड़ दिया। ऐसे में आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ खास बातें-

ऐसा बीता बचपन: मान्यताओं और पौराणिक कथाओं के मुताबिक जन्म के समय तुलसीदास जी रोए नहीं थे, अपितु सबसे पहले उन्होंने भगवान राम का नाम लिया था। जानकार ऐसा भी कहते हैं कि जन्म के समय से ही तुलसीदास के 32 दांत थे। उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के छोटे से गांव राजापुर में आत्माराम दूबे और हुलसी के घर जन्में तुलसीदास का बचपन बहुत ही अभावों में बीता।

जन्म के कुछ समय बाद ही उनकी माता हुलसी गुजर गईं जिसके बाद पिता ने भी उन्हें अशुभ समझकर अपनाने से इंकार कर दिया। 5 साल तक दासी ने उनका पालन-पोषण किया। इसके उपरांत संतश्री नरहयान्नद जी इन्हें अयोध्या ले आए और इनका नाम रामबोला रख दिया। गुरुकुल खत्म करने के बाद वो काशी चले गए जहां 15 साल तक वे वेद-वेदांग का अध्ययन करते रहे।

पत्नी से करते थे बेहद प्रेम पर चुभ गई ये बात: बचपन से ही तुलसीदास जी अकेले रहे हैं, ऐसे में शादी के बाद जब इनका अपना परिवार हुआ तो ये पत्नी के प्रेम में लीन हो चुके थें। एक बार जब इनकी पत्नी अपने मायके में थी तो ये उनसे मिलने के लिए बिना कुछ सोचे समझे चले गए। इस पर पत्नी रत्नावली ने तंज कसते हुए तुलसीदास से कहा कि जितना प्रेम हाड़ मांस के शरीर से है अगर उतना प्रेम प्रभु श्री राम से किया होता तो भवसागर पार हो गए होते। ये बात उन्हें बेहद चुभ गई और तुरंत ही उन्होंने गृहस्थ जीवन से अपनी आसक्ति खत्म कर ली।

भगवान शिव ने दिये दर्शन: ऐसी मान्यता है कि महर्षि वाल्मीकि का अवतार माने जाने वाले तुलसीदास के स्वप्न में महादेव स्वयं पधारे। माना जाता है कि उनकी आज्ञानुसार ही तुलसीदास जी अयोध्या आए और रामचरितमानस की रचना में जुट गए। करीब 2 साल 7 महीने और 26 दिनों में उन्होंने अपने इस ग्रंथ को पूरा किया।

तलुसीदास जी के प्रसिद्ध दोहे:

1. काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान। तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान।।
भावार्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति पर काम, क्रोध, अहंकार और लालच हावी हो जाता है तो एक पढ़ा-लिखा और समझदार व्यक्ति भी अनपढ़ों की तरह व्यवहार करने लगता है। इसलिए मनुष्य को इन अवगुणों से दूर रहना चाहिए।

2. तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं ओर। बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं कि मीठी वाणी बोलना एक व्यक्ति के लिए हुनर है। क्योंकि मीठे बचन वशीकरण का काम करते जिससे आप किसी को भी अपना बना सकते हैं। इसलिए कठोर वचन छोड़ मीठा बोलना चाहिए।

3. दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान। तुलसी दया न छांड़िए, जब लग घट में प्राण।।
भावार्थ: गोस्वामी तुलसीदासजी जी कहते हैं कि मनुष्य को दया करना कभी नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि दया ही हर धर्म का मूल है। जबकि सभी पापों के मूल में अभिमान होता है। अभिमान के आते मनुष्य का विवेक समाप्त खत्म हो जाता है और वह पाप के गर्त में गिरता जाता है।

4. आवत ही हरषै नहीं नैनं नहीं सनेह। तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह।।
भावार्थ: तुलसीदास जी इस दोहे के माध्यम से कहते हैं, जिस जगह आपके जाने से लोग प्रसन्न नहीं होते हों, जहां लोगों की आंखों में आपके लिए प्रेम या स्नेह ना हो, वहां हमें कभी नहीं जाना चाहिए। फिर चाहे वहां धन की बारिश ही क्यों न हो रही हो।

5. तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक। साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक।।
भावार्थ: तुलसीदास जी कहते हैं, परिस्थिति कितनी ही विपरीत क्यों न हो, मनुष्य के ये 7 गुण उसकी हमेशा रक्षा करते हैं। आपका ज्ञान और शिक्षा, आपकी विनम्रता, आपकी बुद्धि, आपके भीतर का साहस, आपके अच्छे कर्म, सच बोलने की आदत और राम यानी ईश्वर में विश्वास।