Mahashivratri 2023: महाशिवरात्रि का पर्व जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, लगभग सभी ने भगवान शिव के दर्शन या पूजा-पाठ करने के लिए शिव मंदिर जाते हैं। आज हम आपको भगवान शिव की ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका जिक्र आठ पुराणों में भी मिलता है। हालांकि इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कठिन रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन यहां की महिमा ऐसी है कि कोई अपने आप को रोक नहीं पाता। जबलपुर के शहरी शोर से दूर यह सुंदर और प्राचीन मंदिर आज भी अनदेखा और अछूता लगता है। आज के दौर में भी लोग इस मंदिर के बारे में बहुत कम जानते हैं। ऐसे में हम आपको इस मंदिर के बारे में पूरी जानकारी बताएंगे।

त्रिशूल भेद मंदिर

हम बात कर रहे हैं त्रिशूल भेद मंदिर की, आपको बता दें कि त्रिशूल भेद एक ऐसी जगह है, जो शहरी शोर-शराबे से कोसों दूर है। यहां ऐसा लगता है जैसे आप हिमालय या कैलाश जैसे किसी शांत शिव स्थान पर आ गए हों। इस मंदिर के चारों ओर मां नर्मदा कोलाहल करती हुई बहती है। मान्यता अनुसार आज भी इस मंदिर में भगवान शिव विराजमान हैं और वह भक्तों की मनोकामना पूरी करते हैं। बता दें कि त्रिशूल भेद मंदिर जबलपुर से मात्र 30 किमी की दूरी पर है। यहां तक ​​पहुंचने के लिए घने जंगल वाले रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है, लेकिन यहां का नजारा देखकर और भगवान के दर्शन करने से अपार आनंद मिलता है।

यहां पहुंचने के बाद सारी गलियां और सड़कें खत्म हो जाती हैं और शहर का शोर फीका पड़ जाता है। यहां आने वाला हर भक्त इतनी ऊर्जा महसूस करता है कि वह शिव का सच्चा भक्त बन जाता है। यहां आने वाला बार-बार आने लगता है, मान्यता है कि यहां आकर शिव के दर्शन मात्र से ही पिछली और अगली सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। महाशिवरात्रि के दिन इस त्रिशूल भेद मंदिर में भगवान शिव का अभिषेक अधिक फलदायी होता है। इसके साथ ही शिवरात्रि के मौके पर यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं और भगवान शंकर की पूजा करते हैं।

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‘त्रिशूल भेद’ मंदिर की ऐतिहासिक कहानी

इस मंदिर का नाम ‘त्रिशूल भेद’ क्यों पड़ा, इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है। यह कथा शिव पुराण में भी मिलती है। कथा के अनुसार अंधकासुर नाम का एक राक्षस तपस्या करता है और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ उसके सामने प्रकट होते हैं। अंधकासुर ने भगवान शंकर से अमरता का वरदान मांगा और यह वरदान पाकर वह अपने कुकर्मों से सभी को प्रताड़ित करने लगा। भगवान भोलेनाथ भी उनके वरदान से बंधे हुए थे। इसलिए वे भी अंधकासुर का वध नहीं कर सके।

Trishul Bhed Mandir (Image: Social Media)

अंधकासुर का त्रिशूल से वध

सोच-विचार कर भोलेनाथ ने अपने त्रिशूल से अंधकासुर नाम के दैत्य का वध करने को कहा, लेकिन त्रिशूल ने भगवान शंकर से कहा कि यह संभव नहीं है। फिर भी अगर वह अंधकासुर को मारता है, तो वह अपनी सभी दैवीय शक्तियों को खो देगा। इसके बाद त्रिशूल ने आगे बढ़कर अंधकासुर का वध किया। उसके बाद त्रिशूल की शक्ति समाप्त हो गई। भगवान शंकर अपने त्रिशूल को पुन: सक्रिय करने के लिए सभी शुभ स्थानों पर ले गए। इस बीच, शंकर ने इस त्रिशूल को नर्मदा नदी में चला दिया। अतः स्वाभाविक रूप से त्रिशूल अपनी पूर्व शक्तिशाली स्थिति में लौट आया। इसलिए इस स्थान को त्रिशूल भेद मंदिर कहा जाता है।