गुजरात के सल्दी में स्थित है भगवान शिव को समर्पित पिपलेश्वर महादेव मंदिर। इस शिव मंदिर का जिक्र पुराणों में भी मिलता है। यह मंदिर भगवान शिव के अन्य मंदिरों से बिल्कुल अलग है। क्योंकि यहां शिवलिंग की पूजा नहीं होती, बल्कि शिवलिंग के जलधर की पूजा की जाती है। कहते हैं इस शिव मंदिर में लगातार जलधारा बहती रहती है। लेकिन आखिर ऐसा क्या है कि भक्त इस मंदिर में विराजमान शिवलिंग की पूजा न करके जलधरी यानि बहते हुए जल की पूजा करते हैं? आगे हम इसे जानते हैं।
पिपलेश्वर महादेव मंदिर कब बना इसके बारे में अब भी सही प्रमाण नहीं मिलता है। हालांकि मान्यता ये है कि इस मंदिर का का जीर्णोद्धार 1981 में ब्रह्मलीन परम विद्या यति ने करवाया था। शहर के बीच में स्थित पांच शिखरों वाला यह शिव मंदिर आज भी लोगों की श्रद्धा का केंद्रबिंदु है। यहां चैत्र नवरात्र में श्रीमद्भागवत कथा, पूरे श्रावण मास में विशेष पूजा-अर्चना होती है। इसके अलावा यहां हर पूर्णिमा को हवन और शिवरात्रि में रात के चारों प्रहर रुद्राभिषेक होता है। इस शिव मंदिर के गर्भगृह में देवी पार्वती, हनुमान जी और गणेश जी की मूर्तियां स्थापित है। साथ ही इस मंदिर को वास्तुकला और शिल्पकला से सुसज्जित किया गया है।
इस मंदिर के दर्शन के लिए भक्त देश-विदेश से आते हैं। मान्यता है कि शिव का यह मंदिर बेहद पवित्र और अद्भुत है। कहते हैं कि भगवान शिव इस मंदिर से किसी भी भक्त को खाली हाथ लौटने नहीं देते हैं। इस शिव मंदिर बारे में कुछ दंत कथाएं भी प्रचलित है। जिसमें से एक कथा के अनुसार पेढ़ा पटेल नामक चरवाहे की गाय नियमित रूप से पीपल के पेड़ के नीचे एक ही स्थान पर दूध देती थी। जहां बाद में जलधर पाई गई। मान्यता है कि हिन्दू धर्म में जिस प्रकार शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं ठीक उसी प्रकार वह गाय भी उसी स्थान पर दूध देती थी। इसलिए यह स्थान बेहद ही पवित्र है।