शिव को महादेव, शंकर, भोलेनाथ इत्यादि नामों से जाना जाता है। कहा जाता है कि शिव जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। सावन का महीना चल रहा है और इस पूरे महीने शिव की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। शिव की पूजा में जल, बिल्वपत्र, आंकड़ा, धतूरा, भांग, कर्पूर, दूध, चावल, चंदन, भस्म, रुद्राक्ष आदि चीजों का प्रयोग जरूर किया जाता है। मान्यता है कि इन चीजों को शिवलिंग पर अर्पित करने से हर मनोकामना पूरी हो जाती हैं। जानिए शिव को क्यों प्रिय हैं ये चीजें…
जल: शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान विष पीने के बाद शिव का कंठ नीला पड़ गया था। विष की ऊष्णता को शांत करने के लिए महादेव को सभी देवी देवताओं ने जल अर्पित किया। इसलिए शिव पूजा में जल के प्रयोग का महत्व होता है।
बिल्व-पत्र: ये भगवान शिव के तीन नेत्रों का प्रतीक माना जाता है। अत: इनकी पूजा में इसका प्रयोग जरूर किया जाता है। मान्यता है कि बिल्वपत्र भोले-भंडारी को चढ़ाना व 1 करोड़ कन्याओं के कन्यादान का फल एक समान है।
आंकड़ा: शास्त्रों अनुसार शिव जी को एक आंकड़े का फूल चढ़ाना सोने के दान के बराबर फलदायी होता है।
धतूरा: भगवान शिव को धतूरा भी काफी प्रिय है। धार्मिक दृष्टि से इसका कारण देवी भागवत पुराण में बताया गया है। शिव जी ने जब सागर मंथन से निकले हलाहल विष को पी लिया था तब वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल आदि औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की तभी से धतूरा शिव को प्रिय है।
भांग: शिव हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं। माना जाता है कि भांग ध्यान केंद्रित करने में मददगार होती है। समुद्र मंथन में निकले विष का सेवन करने पर भगवान शिव को औषधि स्वरूप भांग दी गई थी।
कर्पूर: भगवान शिव का प्रिय मंत्र है कर्पूरगौरं करूणावतारं…. यानी जो कर्पूर के समान उज्जवल हैं। माना जाता है कि भगवान भोलेनाथ को कर्पूर की महक से प्यार है। कर्पूर की सुगंध वातावरण को शुद्ध और पवित्र बनाती है।
दूध: मान्यताओं अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष के घातक प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवताओं ने शिव से दूध ग्रहण करने का निवेदन किया था। शिव ने दूध को ग्रहण किया जिससे उनकी तीव्रता काफी सीमा तक कम हो गई। कहा जाता है कि तभी से शिवलिंग पर कच्चा दूध चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। दूसरा कारण ये भी बताया जाता है कि सावन मास में दूध का सेवन निषेध होता है। क्योंकि दूध इस मास में स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होने के बजाय हानिकारक हो जाता है। इसीलिए सावन मास में दूध का सेवन न करते हुए उसे शिव को अर्पित करने का विधान बताया गया है।
चावल: चावल यानी अक्षत जो टूटा न हो। इसका रंग सफेद होता है। पूजन में अक्षत का उपयोग अनिवार्य है। अक्षत न हो तो शिव पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती।
चंदन: भगवान शिव मस्तक पर चंदन का त्रिपुंड लगाते हैं। चंदन का संबंध शीतलता से है। इसका प्रयोग अक्सर हवन में किया जाता है। कहा जाता है शिव जी को चंदन चढ़ाने से समाज में मान सम्मान बढ़ता है।
भस्म: इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है। उनके अनुसार मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई बचती है। इसलिए वह राख पवित्र है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। एक कथा के अनुसार शिव की पत्नी सती ने जब स्वयं को अग्नि के हवाले कर दिया तो शिव ने उनकी भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए तन पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें।
रुद्राक्ष: एक पौराणिक कथा अनुसार एक समय भगवान शिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि पूर्ण होने पर जब उनका मन बाहरी जगत में आया, तब महादेव ने अपनी आंख बंद कीं। तभी उनकी आंख से जल की कुछ बूंदें पृथ्वी पर गिरीं। कहा जाता है उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।