Shukra Pradosh Vrat 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है और दुर्भाग्य से मुक्ति मिल जाती है। ऐसे ही बैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को प्रदोष व्रत रखा जा रहा है। शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाएगा। इस दिन पंचग्रही योग के साथ-साथ मालव्य, लक्ष्मी नारायण राजयोग का निर्माण हो रहा है। आइए जानते हैं शुक्र प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और शिव आरती…
शुक्र प्रदोष व्रत 2025 शुभ मुहूर्त (Shukra Pradosh Vrat 2025 Shubh Muhurat)
पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 अप्रैल को सुबह 9 बजकर 26 मिनट से आरंभ हो रही है, जो 26 अप्रैल को सुबह 8 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी। प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा होती है।
शुक्र प्रदोष व्रत पूजन का मुहूर्त (Shukra Pradosh Vrat 2025 Pradosh Kaal Time)
शास्त्रों के अनुसार, प्रदोष काल का वक्त आमतौर पर सूर्यास्त से 45 मिनट पहले से लेकर 45 मिनट बाद तक रहता है। इसलिए शुक्र प्रदोष व्रत के दिन शिव जी की पूजा के लिए मुहूर्त शाम 6 बजकर 58 मिनट से रात 9 बजकर 13 मिनट तक रहेगा।
शुक्र प्रदोष व्रत 2025 पूजा विधि (Shukra Pradosh Vrat 2025 Puja Vidhi)
प्रदोष व्रत के दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करके महादेव का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें। इसके बाद शिव मंदिर जाकर शिवलिंग में जलाभिषेक, दुधाभिषेक करें। इसके बाद दिनभर फलाहारी या बिना फल खाएं व्रत रखें। इसके बाद शाम को प्रदोष काल में पूजा करना शुभ माना जाता है। शाम के समय दोबारा स्नान आदि के बाद साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद पूजा स्थल को गंगाजल से पवित्र कर सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा आरंभ करें। शंकर जी को गाय के दूध, घी, गंगाजल, दही, शहद, शक्कर आदि से अभिषेक कराएं। इसके बाद फूल, माला, सफेद चंदन, धतूरा, बेलपत्र, भस्म, अक्षत, कलावा, आक के फूल, जनेऊ, धूप जला दें। फिर शिव जी के मंत्र, चालीसा के साथ प्रदोष व्रत कथा का पाठ कर लें। अंत में विधिवत तरीके से शिव आरती करके भूल चूक के लिए माफी मांग लें।
शिव आरती (Shiv Ji Aarti)
ॐ जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे।
त्रिगुण रूप निरखत त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
अक्षमाला वनमाला मुण्डमालाधारी।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघंबर अंगे।
सनकादिक गरुड़ादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशूलधारी।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूरे का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मनवान्छित फल पावे॥
ओम जय शिव ओंकारा॥ स्वामी ओम जय शिव ओंकारा॥
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