जब भी सच्चे प्रेम की बात होती है तो श्रीकृष्ण और राधा का नाम लिया जाता है। कृष्ण- राधा के प्रेम की कहानियां सदियों से सुनी और पढ़ी जा रही हैं। श्रीकृष्ण और राधा का प्रेम जहां एक ओर पवित्र माना जाता है तो वहीं दूसरी ओर कई लोगों के मन में यह सवाल भी खटकता है कि जब इन दोनों के बीच इतना गहरा प्यार था तो फिर अलग क्यों हुए? सवाल ये भी उठता है कि कान्हा के गोकुल और मथुरा छोड़ने के बाद राधा रानी का क्या हुआ? इसके पीछे कई तरह की व्याख्याएं दी जाती हैं। कोई तो राधा को कृष्ण के जीवन की धारा बताता है तो कोई उन्हें महज एक कल्पना।
दरअसल, सच तो यह है कि हम और आप कभी भी राधा का कृष्ण के प्रति प्रेम को समझ ही नहीं सकते क्योंकि कोई भी राधा के प्रेम की उस चरमसीमा तक कभी पहुंचा ही नहीं। फिर भी कुछ धार्मिक ग्रंथ राधा और कृष्ण के प्रेम प्रंसग के बारे में व्याख्या करते हैं। सोशल मीडिया पर कोई कहता है कि कृष्ण के जाने के बाद राधा ने माता-पिता के दवाब में आकर किसी गोप से विवाह किया। किसी का कहना है कि राधा का विवाह अयन से हुआ। कोई रयान के साथ उनके विवाह की बात करता है।
राधा-कृष्ण के संबंधों पर HG मधुमंगल प्रभु का कहना है कि ग्रंथों के आधार पर राधा के दिल में कृष्ण के सिवाय कोई दूसरा जगह नहीं बना सका। उन्होंने कुछ पंक्तियां प्रस्तुत की हैं, ”प्रेम गली अति साकरी जामे दो न समाहीं” यानि प्रेम की गली इतनी सकरी है कि इसमें दो लोग समा ही नहीं सकते। राधा सिर्फ कृष्ण के लिए थीं, यह तो प्रेम का स्वभाव है किसी भी कारण से प्रेम संबंध टूटता नहीं है। इसीलिए उन्होंने ग्रंथ की कुछ और पक्तियां प्रस्तुत की जिसमें प्रेम को परिभाषित किया।
”’सर्वथा ध्वंस रहितं सत्यपि ध्वंस कारणे, यद भाव बन्धनं यूनोः स प्रेमा परिकीर्तितः’ यनि जो संबंध कभी भी टूटे नहीं चाहे 1000 कारण हो ऐसे दो भाव होते हैं जिसे प्रेम कहा जाता है…प्रेमी के अलग होने के बाद भी यह संबंध टूट नहीं सकता। प्रेम मूर्तिमान हैं।
अब बात आती है कि राधा का विवाह अभिमन्यु गोप से हुआ था या नहीं? इस बारे में शास्त्र वर्णन करते हैं कि जिस समय भगवान श्रीकृष्ण की लीला में ब्रह्मा जी ने सारे गोपों को उठा लिया था और भगवान स्वयं सारे गोपों का रूप धारण कर चुके थे। पूर्णमासी देवी के कहने पर सारी गोपियों का विवाह गोपों से हो गया था जो कि वास्तव में कृष्ण ही हैं। क्योंकि गोपियों ने व्रत किया था कृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए और अंततः भगवान के उनकी ये इच्छा पूर्ण की।
इसी लीला में असल में जिस अभिमन्यु के साथ राधा का विवाह हुआ था वो कृष्ण की छाया का विस्तार थे। कभी उन्होंने राधा रानी को स्पर्श तक नहीं किया। वे तो राधा के साथ रहकर उनकी सेवा कर रहे थे। श्रीकृष्ण जब द्वारका चले गए तो राधा ने उनके लिए त्याग शुरू कर दिया। इस सेवा को ग्रंथ में ‘विप्रलंब सेवा’ जिसका मतलब विरह में सेवा, कहा गया है। कृष्ण से बिना मिले ही विरह और उन्हें खुश करने के लिए त्याग की भावना लाना। कृष्ण के दूर जाने के बाद भी मन में उनके लिए प्रेम बढ़ेना न कि कम करना।
इसीलिए राधा रानी कहती हैं। ‘आश्लिष्य वा पाद-रतां पिनष्टु माम् अदर्शनान्मर्म-हताम्-हतां करोतु वा यथा तथा वा विदधातु लम्पटो मत्प्राण-नाथस्तु स एव नापरः॥’ वो मेरे पास रहें या दूर रहें, मुझसे प्रेम करें या न करें, प्रेम का मतलब है हर स्थिति में हम आपसे प्रेम करते हैं। यही कारण है कि राधा रानी का प्रेम शुद्ध माना जाता है जिसमें काम वासना नहीं है सिर्फ विरह और त्याग है। अंत में इसीलिए कृष्ण के साथा राधा का प्रेम अमर, अजर और अविनाशी माना जाता है, क्योंकि उन्होंने शरीर से मन से कृष्ण को जीता है।