Pradosh Vrat October 2020: प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित होता हैं। एक महीने में दो बार प्रदोष व्रत किया जाता है। हिंदू पंचांग के मुताबिक यह व्रत हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन किया जाता है। इस बार प्रदोष व्रत 28 अक्तूबर यानी आज रखा जा रहा है।
ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की सच्चे मन से आराधना करता है भगवान शिव उस व्यक्ति पर अपनी कृपा बरसाते हैं। बताया जाता है कि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की उपासना करनी चाहिए। मान्यता है कि प्रदोष व्रत के दिन जो व्यक्ति स्कंद पुराण में वर्णित प्रदोष स्तोत्र का पाठ करता है उनके सभी संकटों का नाश होता है।
प्रदोष स्तोत्र पाठ विधि (Pradosh Vrat Paath Vidhi)
प्रदोष व्रत के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें।
स्नान कर साफ कपड़े पहनें।
एक चौकी पर सफेद रंग का कपड़ा बिछाएं।
चौकी पर गंगाजल के छींटे मारकर स्थान पवित्र करें।
फिर उस पर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित करें।
भगवान शिव को सफेद पुष्पों की माला पहनाएं।
अब सरसों के तेल का दीपक जलाएं। साथ ही दीप, धूप और अगरबत्ती भी जलाएं।
भगवान शिव का ध्यान करते हुए उन्हें दंडवत प्रणाम करें।
इसके बाद भगवान शिव के मंत्रों का जाप करें।
फिर प्रदोष स्तोत्र का पाठ करें। पाठ पूरा होने के बाद भगवान शिव की आरती कर उन्हें प्रणाम करें।
भगवान शिव को फल या मिठाई का भोग लगाएं। आप चाहें तो खीर का भोग भी लगा सकते हैं। क्योंकि ऐसा बताया जाता है कि भगवान शिव को खीर का भोग अति प्रिय है।
श्रीस्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषस्तोत्राष्टकम्
सत्यं ब्रवीमि परलोकहितं ब्रव्रीम सारं ब्रवीम्युपनिषद्धृदयं ब्रमीमि।
संसारमुल्बणमसारमवाप्य जन्तोः सारोऽयमीश्वरपदाम्बुरुहस्य सेवा॥
ये नार्चयन्ति गिरिशं समये प्रदोषे, ये नाचितं शिवमपि प्रणमन्ति चान्ये।
एतत्कथां श्रुतिपुटैर्न पिबन्ति मूढास्ते, जन्मजन्मसु भवन्ति नरा दरिद्राः॥
ये वै प्रदोषसमये परमेश्वरस्य, कुर्वन्त्यनन्यमनसांऽघ्रिसरोजपूजाम्।
नित्यं प्रवृद्धधनधान्यकलत्रपुत्र सौभाग्यसम्पदधिकास्त इहैव लोके॥
कैलासशैवभुवने त्रिजगज्जनिनित्रीं गौरीं निवेश्य कनकाचितरत्नपीठे।
नृत्यं विधातुमभिवांछति शूलपाणौ देवाः प्रदोषसमये नु भजन्ति सर्वे॥
वाग्देवी धृतवल्लकी शतमखो वेणुं दधत्पद्मजस्तालोन्निद्रकरो रमा भगवती गेयप्रयोगान्विता।
विष्णुः सान्द्रमृदंङवादनपयुर्देवाः समन्तात्स्थिताः, सेवन्ते तमनु प्रदोषसमये देवं मृडानीपातम्॥
गन्धर्वयक्षपतगोरग-सिद्ध-साध्व-विद्याधराम रवराप्सरसां गणश्च ।
येऽन्ये त्रिलोकनिकलयाः सहभूतवर्गाः प्राप्ते प्रदोष समये हरपार्श्र्वसंस्थाः ॥
अतः प्रदोषे शिव एक एव पूज्योऽथ नान्ये हरिपद्मजाद्याः।
तस्मिन्महेशे विधिनेज्यमाने सर्वे प्रसीदन्ति सुराधिनाथाः॥
एष ते तनयः पूर्वजन्मनि ब्राह्मणोत्तमः।
प्रतिग्रहैर्वयो निन्ये न दानाद्यैः सुकर्मभिः॥
अतो दारिद्र्यमापन्नः पुत्रस्ते द्विजभामिनि।
तद्दोषपरिहारार्थं शरणां यातु शंकरम्॥
॥ इति श्रीस्कन्दपुराणान्तर्गत प्रदोषस्तोत्राष्टक संपूर्णम् ॥