षटतिला एकादशी माघ मास की एकादशी को पड़ती है। इस महीने षटतिला एकादशी 31 जनवरी को पड़ने वाली है। यह एकादशी अन्य सभी एकादशियों में विशेष महत्व की मानी जाती है। वैसे तो साल की सभी एकादशी व्रत, दान-पुण्य के लिए शुभ होती है लेकिन माघ चूंकि पवित्र मास माना जाता है। इसलिए इस मास की एकादशियों का भी खास महत्व है। साथ ही पौराणिक ग्रन्थों में भी इस एकादशी का वर्णन मिलता है। षटतिला एकादशी क्या है? शास्त्रों में इसकी विधि क्या बताई गई है और षटतिला एकादशी व्रत के नियम क्या-क्या हैं? शास्त्रों के अनुसार इसे जानते हैं।
विधि: षटतिला एकादशी का व्रत अन्य एकदशियों के व्रत से थोड़ा अलग तरीके से रखा जाता है। माघ कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को भगवान विष्णु का स्मरण करें। इसके बाद गोबर में तिल मिलकर 108 उपलें बना लें। फिर दशमी के दिन एक समय ही भोजन करें और विष्णु जी का स्मरण करें। इसके पश्चात एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजन करें। भगवान श्री कृष्ण का स्मरण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल या बिजौर के फूल से विधि पूर्वक पूजा कर अर्घ्य दें। रात के समय भजन-कीर्तन करें और 108 बार “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” इस मंत्र से उपलों को हवन अग्नि में आहुति दें। कहते हैं कि षटतिला एकादशी व्रत में स्नान-दान से लेकर आहार तक की प्रक्रिया में तिल का प्रयोग करना शुभ होता है। इसलिए इस दिन तिल का प्रयोग अवश्य करें।
नियम: शास्त्रों के अनुसार षटतिला एकादशी व्रत बहुत ही सख्त होता है। यह एकादशी तिथि से ठीक पहले सूर्योदय से लेकर एकादशी से अलगे सूर्योदय तक रखा जाता है। इस एकादशी के नियम का पालन हर व्रती को 48 घंटे तक करना होता है। माना जाता है जो कोई भी षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें इन नियमों का कठोरता से पालन करना चाहिए। षटतिला एकादशी के दिन ताजा फल, सूखे मेवे, सब्जी और दूध से बनी मिठाई का ही सेवन करने का विधान है। कई स्थानों पर केवल साबुदाना, मूंगफली और आलू का ही भोजन इस दिन किया जाता है।
षटतिला एकादशी व्रत में दशमी के दिन दाल और शहद का सेवन नहीं किया जाता है। इस दिन कुछ लोग जल भी नहीं पीते हैं। इसलिए षटतिला एकादशी व्रत को निर्जला एकादशी भी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्रद्धालु रात में एकादशी व्रत की कथा, कहानी कहते-सुनते हैं। एकादशी के अगले दिन को द्वादशी कहा जाता है। यह दशमी या अन्य दिनों की तरह दिन आम दिन होता है। सुबह जल्दी नहाकर, दीए जलाकर भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। साथ ही दशमी के दिन बनाया गया भोजन खाकर व्रत पूर्ण किया जाता है।


