Shardiya Navratri 6nd Day, Maa Skandmata Vrat Katha In Hindi: आज शारदीय नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप मां स्कंदमाता की पूजा की जाएगा। तृतीया तिथि दो दिन होने के कारण तिथियों में बदलाव हुआ है। मां स्कंदमाता के स्वरूप की बात करें, तो मां स्कंदमाता का दिव्य स्वरूप अत्यंत मनोहारी और शांतिमय है। उनकी गोद में बाल रूप में कार्तिकेय (स्कंद) विराजमान हैं, जो उनकी मातृत्व की अद्भुत छवि को प्रकट करता है। देवी की चार भुजाएं हैं जिसमें दो हाथों में कमल पुष्प सुशोभित हैं, एक हाथ से वे अपने पुत्र स्कंद को स्नेहपूर्वक थामे हुए हैं और चौथा हाथ सदैव भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करने की मुद्रा में है। मां स्कंद माता की पूजा करने से भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकते हैं। इनकी पूजा करने से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही ज्ञान और विवेक का विकास, सुख-समृद्धि का वास, शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति, साहस आदि में वृद्धि होती है। आज के दिन मां दुर्गा के स्वरूप मां स्कंदमाता की विधिवत पूजा करने के साथ इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करें। आइए जानते हैं स्कंद माता की संपूर्ण कथा…
स्कंदमाता की कथा (Maa Skandmata Ki Katha)
प्राचीन समय में तारकासुर नामक एक पराक्रमी और घमंडी राक्षस हुआ। वह बलशाली तो था ही, परंतु उसकी इच्छा थी कि वह सदा के लिए अजेय और अमर बन जाए। इसी उद्देश्य से उसने कठोर तपस्या आरंभ की। घोर जंगलों में, तीव्र व्रत और उपवास करते हुए उसने ब्रह्माजी की आराधना की।
दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर सृष्टिकर्ता ब्रह्माजी उसके सामने प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। तारकासुर ने तुरंत कहा-“हे प्रभु! मुझे अमरत्व प्रदान कीजिए।”
ब्रह्माजी ने गंभीर स्वर में कहा—“वत्स! यह सृष्टि का अटल नियम है कि जो जन्म लेता है, उसकी मृत्यु निश्चित है। अमरत्व किसी को भी संभव नहीं।”
यह सुनकर तारकासुर निराश हुआ। उसने कुछ देर विचार किया और चालाकी से बोला—“तो ऐसा वरदान दीजिए कि मेरी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों से ही हो।”
तारकासुर की सोच यह थी कि भगवान शिव गहन तपस्वी हैं, वे कभी विवाह नहीं करेंगे। इस कारण उनका कोई पुत्र नहीं होगा और उसका जीवन सुरक्षित रहेगा।
ब्रह्माजी ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और अदृश्य हो गए। वरदान पाकर तारकासुर का अभिमान और भी बढ़ गया। वह समझने लगा कि अब उसका कोई अंत नहीं है। तभी से उसने तीनों लोकों में आतंक फैलाना आरंभ कर दिया। देवता, ऋषि-मुनि और मनुष्य सभी उसके अत्याचारों से त्रस्त हो उठे।
अत्याचारों से पीड़ित देवता जब और कोई उपाय न देख पाए, तो वे सभी कैलाश पर भगवान शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने विनती की—
“हे महादेव! तारकासुर का आतंक बढ़ता जा रहा है। कृपया उसका नाश कीजिए और हमें भय से मुक्त कीजिए।”
देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव ने पार्वतीजी से विवाह करने का निश्चय किया। शुभ मुहूर्त में हिमालयकुमारी पार्वती और भगवान शिव का दिव्य विवाह संपन्न हुआ।
समय बीता और उनके यहां कार्तिकेय (जिन्हें स्कंद या कुमार भी कहा जाता है) का जन्म हुआ। कार्तिकेय तेजस्वी, पराक्रमी और अद्भुत साहस से परिपूर्ण थे। जब वे युवा हुए, तो देवताओं के सेनापति बनकर उन्होंने देवसेना का नेतृत्व किया।
युद्धभूमि में कार्तिकेय ने अपने तेज, बल और दिव्य अस्त्रों से तारकासुर का सामना किया। भीषण युद्ध के पश्चात अंततः उन्होंने तारकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार ब्रह्माजी का वरदान सत्य हुआ और देवताओं को उसके अत्याचार से मुक्ति मिली।
कार्तिकेय की माता होने के कारण पार्वती का एक रूप स्कंदमाता कहलाता है। नवरात्रि में पांचवें दिन स्कंदमाता की उपासना का विधान है। जो भक्त उन्हें स्मरण करता है, उसे साहस, बल और पुत्र-सुख की प्राप्ति होती है।
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