Navratri 2nd Day, Mata Brahmacharini Ji Ki Aarti Lyrics in Hindi: शारदीय नवरात्रि आरंभ हो चुकी है, जो 3 अक्टूबर से लेकर 11 अक्टूबर तक चलेगी। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखने का विधान है। कई साधक पहला और अष्टमी का व्रत रखते हैं, तो कई लोग पूरे नौ दिनों का व्रत रखकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करते हैं। शारदीय नवरात्रि के दूसरे दिन मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से जातक को हर क्षेत्र में सफलता हासिल होती है। ‘ब्रह्म’ का अर्थ तपस्या है और ‘चारिणी’ का अर्थ आचरण करने वाली यानी तप का आचरण करने वाली देवी। मां ब्रह्मचारिणी के स्वरूप की बात करें, तो वो काफी अनूठा है। मां हमेशा शांत अवस्था में तप में लीन रहती है। जिसके कारण उनके मुख मे तेज है। मां ने दाहिने हाथ में अक्ष माला और बाएं हाथ में कमंडल धारण किया हुआ है। नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्नचारिणी की विधिवत पूजा करने के साथ मां दुर्गा की आरती के साथ-साथ इस आरती को अवश्य पढ़ना चाहिए। इससे माता अति प्रसन्न होती है। आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की संपूर्ण आरती…
ब्रह्माचारिणी देवी की आरती (Mata Brahmacharini Ji Ki Aarti )
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।
मां ब्रह्मचारिणी के मंत्र
1- ‘ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:’
2- ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी।
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते
3- या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ब्रह्मचारिणी की स्तोत्र पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति- मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
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