वास्तु शास्त्र के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन घर के मुख्य द्वार के दोनों तरफ स्वास्तिक का चिह्र बनाएं। द्वार पर आम के पल्लव का तोरण लगाएं। मान्यता है कि ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि इस दिन माता भक्तों के घर आती हैं। इस साल नवरात्र का त्योहार 17 अक्टूबर, शनिवार से शुरू होकर 24 अक्टूबर, शनिवार को समाप्त हो रहा है।
इस दौरान श्रद्धालु नौ दिन तक मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। भक्तजन मां का आशीर्वाद पाने के लिए उपवास भी रखते हैं। लेकिन आप को बता दें कि मां की पूजा में वास्तु का विशेष महत्व है। पूजा को सफल और फलदायी बनाने के लिए देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की स्थापना और पूजा की सही दिशा का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है। पूजा स्थल पर वास्तु का सही ज्ञान रहने से श्रद्धालु के घर सुख-शांति में वृद्धि होती है। मां की पूजा में इन वास्तु के नियमों का रखें ध्यान…
स्वच्छता का रखें विशेष ध्यान – नवरात्र के पहले दिन अपने घर की साफ-सफाई करें। घर के अंदर यदि कोई अनावश्यक सामान पड़ा हो तो उसे बाहर कर दें। कहा जाता है कि इस तरह के सामान घर में होने से एक प्रकार के नकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। गंदगी घर के अंदर नहीं रखें और धूप-दीप जलाकर घर को स्वच्छ रखें।
ईशान कोण में करें पूजा: पूजा के लिए सबसे अच्छी स्थान उत्तर या उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण को माना जाता है। इस स्थान को देव स्थल भी कहा जाता है। नवरात्रि में पूजा और कलश स्थापना इसी दिशा में करें। इस दिशा में पूजा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। पूजा करने के दौरान आपका मुख पूर्व की ओर होना चाहिए।
पूर्व को देवताओं का वास कहा गया है। माता की मूर्ति को आसन पर रखना चाहिए। वास्तु शास्त्र में आम या चंदन की लकड़ी पर स्थापित करना उत्तम माना गया है। अखंड ज्योति को आग्नेय कोण यानी दक्षिण पूर्व दिशा में जलाएं तो अधिक फलदायी होता है।
पूजन सामग्री का रखें ख्याल – नवरात्र के नौ दिन माता की पूजन सामग्री को मंदिर के दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। इसमें देसी घी, गुगल और कपूर को विशेष रूप से शामिल करें। माता को लाल रंग का वस्त्र विशेष पसंद है। इसलिए पूजा सामग्री को लाल वस्त्र के ऊपर रखें। माता की पूजा में ताम्बे और पितल के बर्तन का प्रयोग करें।
