Sharad Purnima or Kojagiri Purnima 2018 Vrat Katha and Vidhi: हिंदू कैलेंडर के मुताबिक अश्विन माह चल रहा है। अश्विन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा 23 अक्टूबर को पड़ रही है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों के लिए इस पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। साथ ही कुछ लोग इसे रास पूर्णिमा भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा 16 कलाओं से परिपूर्ण होकर अमृत की बरसात करता है। शरद पूर्णिमा की रात खुले आसमान में खीर रखने का विधान है। सुबह में इस खीर को प्रसाद के रूप में खाया जाता है। मालूम हो कि शरद पूर्णिमा पर कई लोग व्रत भी रखते हैं। हम आपके लिए शरद पूर्णिमा पर व्रत कथा लेकर आए हैं। यदि आपने भी व्रत रखा हो तो इस व्रत कथा का अपने परिजनों के साथ पाठ कर सकते हैं।
व्रत कथा: कथा के मुताबिक एक साहुकार की दो पुत्रियां थीं। दोनो पुत्रियां पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। लेकिन बड़ी पुत्री पूरा व्रत करती थी जबकि छोटी पुत्री अधूरा व्रत करती थी। इसका परिणाम यह हुआ कि छोटी पुत्री की संतान पैदा होते ही मर जाती थी। उसने पंडितों से इसका कारण पूछा। उन्होंने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी, जिसके कारण तुम्हारी संतान पैदा होते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से तुम्हारी संतान जीवित रह सकती है। उसने पंडितों की सलाह पर पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया।
उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटाकर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दिया। बड़ी बहन जब उस पर बैठने लगी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया। बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। तब बड़ी बहन ने कहा कि तुम मुझे कलंक लगाना चाहती थी। मेरे बैठने से यह मर जाता। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तुम्हारे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तुम्हारे पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। इसके बाद नगर में उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया। तब से शरद पूर्णिमा व्रत का महत्ता दूर-दूर तक फैल गई। और साथ ही देवी लक्ष्मी की पूजा की जाने लगी।