Shani Ka Rashi Parivartan (Shani Change) 2020: 24 जनवरी, 2020 की दोपहर 12:04 मिनट पर शनि का गोचर हुआ और शनि देवगुरु वृहस्पति की राशि धनु से अपने घर मकर में चले गए। शनि के इस गृह परिवर्तन से ज़मीं और आसमाँ का मंजर बदल जाएगा। कोई रोएगा, कोई मुस्कुराएगा। इसके पहले 26 नवंबर, 2017 को शनि का गोचर हुआ था, जब शनि अपना घर बदल कर वृश्चिक से धनु राशि में पधारे थे। तब मकर राशि की साढ़ेसाती और वृष तथा कन्या की अढ़ैया का आग़ाज़ हुआ था।

आज शनि के गोचर से कुंभ राशि के लोग शनि के साढ़ेसाती के फंदे में फँस जायेंगे, वहीं मिथुन और तुला वाले अढ़ैया के जाल में उलझ कर फड़फड़ायेंगे. शनि का यह गरी परिवर्तन हर किसी की ज़िंदगी के सफ़हे पर नए हर्फ़ गढ़ेगा। पर कौन है ये शनि और क्यों है इनका इतना आतंक? इसकी पड़ताल और चुपके से लेते हैं कैसा रहेगा आपका हाल। सदगुरुश्री के नाम से प्रसिद्ध प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु सदगुरुश्री स्वामी आनन्दजी का विश्लेषण।

शनि एक दिलकश प्लेनेट: शनि यानी सौर मंडल का सबसे हसीन ग्रह। जिसकी अदा और सूरत से पहली नज़र में ही इश्क़ हो जाए। किसी महबूब की तरह। उसके इर्द गिर्द ख़ूबसूरत छल्ले मानो उसे बोसे देते रहते हैं। अज्ञानता वश उन्हें कष्ट देने वाले ग्रह के रूप में देखा जाता है, अशुभ समझा जाता है, बुरा माना जाता है। हैरानी की बात ये है कि केवल भारत में ही नहीं, वरन पश्चिमी जगत में भी सैटर्न यानी शनि को कमोबेश ऐसी ही उपाधि प्राप्त है। उन्हें वहाँ भी टेढ़ी नज़रों से ताका जाता है, घूर कर देखा जाता है। लेकिन ये धारणा असत्य ही नहीं, शनि के मूल स्वभाव के बेहद विपरीत भी है।

शनि दरअसल, प्राकृतिक संतुलन और समता के मुख्य वाहक और कारक हैं। प्राचीन अभिलेख व पुराणों के सफ़हे पर उभरे उल्लेख शनिदेव को कर्म और न्याय का कर्ता मानते हैं। हां, शनि कष्ट देते हैं, पर सिर्फ़ उन्हें जिनके कर्मों की दिशा विपरीत है, जिन्होंने अपने उलटे कर्मों से अपने खाते में नकारात्मक फलों का सृजन तथा अन्यायपूर्ण रूप से अस्वाभाविक विषमता, वैमनस्य, लोभ व अनुचित पंथ का पोषण किया है, जिन्होंने प्रकृति की व्यवस्था को अपने हाथ में लेने का प्रयास किया है। सच तो ये है शनि दाता हैं, दयालु हैं, मित्र हैं, मोक्ष के कारक हैं, आध्यात्म के प्रवर्तक हैं, और न्याय के सूत्रधार हैं।

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अकेले शनि का सीधा असर कायनात के चालीस प्रतिशत हिस्से पर: भारतीय ज्योतिष में सौरमण्डल के नौ ग्रहों का प्रभाव सृष्टि पर पाया गया है जिसमें से राहू और केतु छाया ग्रह हैं। छाया ग्रह से तात्पर्य गुरुत्वाकर्षण (Gravitation) और ब्रम्हाण्डिय आकर्षण (Levitation) अर्थात उत्तोलन से है। विज्ञान बचे सात ग्रहों में से सिर्फ़ पांच को ही ग्रह मानता है। वो सूर्य को तारा और चंद्रमा को धरती का उपग्रह कहता है। ज्योतिष में इन नौ ग्रहों की रेडियो अक्टिविटी के सृष्टि पर प्रभाव का अध्ययन होता है। सबसे कमाल की बात ये है कि ज्योतिष के इन नौ ग्रहों में से अकेले शनि का असर सृष्टि के चालीस प्रतिशत से ज़्यादा लोगों पर पर सीधा और हमेशा रहता है। क्योंकि उनकी रेडियो सक्रियता सबसे अधिक है और सूर्य के एक चक्कर में शनि को सर्वाधिक समय लगता है। इसलिए शनि ज्योतिष के अति महत्वपूर्ण ग्रहों शुमार होते हैं।