प्रदोष व्रत भगवान शिव के लिए किया जाता है। इस व्रत को बहुत ही फलदायक माना जाता है। इस व्रत को करने वाली स्त्री अपनी हर मनोकामना को पूरा कर सकती है। इस व्रत का महत्व तभी है जब इसे प्रदोष काल में किया जाए। सूरज डूबने के बाद और रात के होने से पहले के पहर को सांयकाल कहा जाता है। इस पहर को ही प्रदोष काल कहा जाता है। इस व्रत को करने वाली महिलाओं की इच्छाएं भगवान शिव पूरी करते हैं। प्रदोष व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को किया जाता है। इस व्रत का महत्व सप्ताह के दिन अनुसार होता है। शनिवार को प्रदोष व्रत करने से निसंतान दंपतियों की संतान की चाहत पूरी होती है।
पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर का सेठ धन-दौलत और वैभव से सम्पन्न था, उसमें किसी बात का घमंड नहीं था। वो एक दयालु सेठ था, माना जाता है कि उसके दरवाजे से कोई भी खाली हाथ वापस नहीं आता था। दूसरों को खुश करने वाला और उनका अच्छा चाहने वाला सेठ और उसकी पत्नी खुद बहुत ही दुखी थे। उनके दुख का कारण संतान का नहीं होना था। दुनिया के सबसे बड़े दुखों में संतान का ना होना सबसे बड़ा दुख माना जाता है। अपनी इस परेशानी का हल करने के लिए उन्होनें तीर्थ जाने का निर्णय लिया।
तीर्थयात्रा के लिए निकले सेठ और उसकी पत्नी को एक विशाल वृक्ष के नीचे समाधि लगाए एक साधु दिखे। सेठ ने सोचा कि महाराज का आशीर्वाद लेने के बाद ही आगे की यात्रा शुरु की जाए। पति-पत्नी साधु के सामने हाथ जोड़कर बैठ गए और उनके ध्यान खत्म होने का इंतजार करने लगे। पूरा दिन बीत जाने के बाद भी साधु का ध्यान नहीं टूटा, लेकिन सेठ और उसकी पत्नी धैर्य के साथ हाथ जोड़कर बैठे रहे। जब साधु की समाधि टूटी तो उन्होनें सेठ और उसकी पत्नी की तरफ देखा और हल्का मुस्कुराए और आशीर्वाद देकर कहा- कि मैं तुम्हारे मन की कथा जान गया हूं। इसी के साथ तुम्हारे भक्तिभाव और धैर्य से प्रसन्न हूं। साधु ने संतान प्राप्ति के व्रत की विधि सेठ और पत्नी को समझाया और भगवान शिव की वंदना उन्हें समझाई। तीर्थ से लौटने के बाद दोनों ने प्रदोष व्रत किया और कुछ समय बाद उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। उनके घर से शनि की साढ़ेसाती की दशा भी छट गई।


