Shani Jayanti 2023: ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को शनि जयंती मनाई जाती है। माना जाता है कि इस दिन भगवान शनि का जन्म हुआ था। इसी कारण हर साल इस दिन शनि जयंती का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन शनि भगवान की विधिवत पूजा करने के साथ कुछ मंत्रों का जाप करके व्यक्ति शनि के साढ़े साती और ढैय्या के दुष्प्रभावों से मुक्ति पा सकता है। इसके साथ ही शनि की कृपा से हर कार्य को सिद्ध कर सकता है। शनि जयंती या फिर शनिवार के दिन इन मंत्रों और कवच का जरूर जाप करना चाहिए।
शनि जयंती के दिन शनि महामंत्र, बीज मंत्र, शनि रोग निवारण मंत्र और कवच का पाठ करने से व्यक्ति को हर तरह के दुख-दर्द से निजात मिल जाती है। इसके साथ ही हर तरह के रोगों से मुक्ति मिल जाती है और शनिदेव का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
शनि महामंत्र
ऊं निलान्जन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम॥
शनि बीज मंत्र
ओम प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः।
शनि रोग निवारण मंत्र
ध्वजिनी धामिनी चैव कंकाली कलहप्रिहा।
कंकटी कलही चाउथ तुरंगी महिषी अजा।।
शनैर्नामानि पत्नीनामेतानि संजपन् पुमान्।
दुःखानि नाश्येन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखमं।।
करें इस मंत्र का जाप
ॐ भूर्भुव: स्व: शन्नोदेवीरभिये विद्महे नीलांजनाय धीमहि तन्नो शनि: प्रचोदयात्
शनि कवच
अस्य श्री शनैश्चरकवचस्तोत्रमंत्रस्य कश्यप ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, शनैश्चरो देवता, शीं शक्तिः,
शूं कीलकम्, शनैश्चरप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः
नीलाम्बरो नीलवपु: किरीटी गृध्रस्थितत्रासकरो धनुष्मान्।
चतुर्भुज: सूर्यसुत: प्रसन्न: सदा मम स्याद्वरद: प्रशान्त:।।
श्रृणुध्वमृषय: सर्वे शनिपीडाहरं महंत्।
कवचं शनिराजस्य सौरेरिदमनुत्तमम्।।
कवचं देवतावासं वज्रपंजरसंज्ञकम्।
शनैश्चरप्रीतिकरं सर्वसौभाग्यदायकम्।।
ऊँ श्रीशनैश्चर: पातु भालं मे सूर्यनंदन:।
नेत्रे छायात्मज: पातु कर्णो यमानुज:।।
नासां वैवस्वत: पातु मुखं मे भास्कर: सदा।
स्निग्धकण्ठश्च मे कण्ठ भुजौ पातु महाभुज:।।
स्कन्धौ पातु शनिश्चैव करौ पातु शुभप्रद:।
वक्ष: पातु यमभ्राता कुक्षिं पात्वसितस्थता।।
नाभिं गृहपति: पातु मन्द: पातु कटिं तथा।
ऊरू ममाSन्तक: पातु यमो जानुयुगं तथा।।
पदौ मन्दगति: पातु सर्वांग पातु पिप्पल:।
अंगोपांगानि सर्वाणि रक्षेन् मे सूर्यनन्दन:।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं पठेत् सूर्यसुतस्य य:।
न तस्य जायते पीडा प्रीतो भवन्ति सूर्यज:।।
व्ययजन्मद्वितीयस्थो मृत्युस्थानगतोSपि वा।
कलत्रस्थो गतोवाSपि सुप्रीतस्तु सदा शनि:।।
अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे।
कवचं पठते नित्यं न पीडा जायते क्वचित्।।
इत्येतत् कवचं दिव्यं सौरेर्यन्निर्मितं पुरा।
जन्मलग्नस्थितान्दोषान् सर्वान्नाशयते प्रभु:।।