Shani Dosh Upay: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शनि को सबसे धीमी गति वाला ग्रह माना जाता है, क्योंकि ये एक राशि में करीब ढाई साल तक रहते हैं। ऐसे में वह जातकों को उनके कर्मों के हिसाब से फल देते हैं। शनि की महादशा, साढ़ेसाती और ढैया का प्रभाव भी व्यक्ति के जीवन पर किसी न किसी तरह से पड़ता है। शनि मुख्य रूप से शारीरिक श्रम और सेवकों का कारक माना जाता है। कुंडली में शनि की स्थिति खराब होने से व्यक्ति को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और परिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है।  शनि के अशुभ प्रभाव से बिजनेस, नौकरी में परेशानी, हर काम में रुकावट, पैसों की तंगी का सामना करने से लेकर स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। आइए जानते हैं शनि दोष और महादशा के दुष्प्रभावों को कम करने के लिए कौन से उपाय करना होगा लाभकारी।

शनि दोष के दुष्प्रभावों को कम करने के ज्योतिषीय उपाय

शनिदेव को चढ़ाएं तेल

शनिदेव की कृपा पाने के लिए शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना लाभकारी सिद्ध हो सकता है। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि शनिवार के दिन तेल न खरीदें, बल्कि एक दिन पहले ही खरीद लें। शनिदेव की मूर्ति में तेल अर्पित करें और उनकी कभी भी आंखों में न देखें। हमेशा उनके चरणों में देखें।

करें तेल का दान

शनिवार के दिन तेल मांगने वाले को तेल का दान करना चाहिए। इसे छाया दान भी कहाता है। इसके लिए एक कटोरी में थोड़ा सा तेल ले लें। इसके बाद इसमें अपनी परछाई देखकर दान कर दें। इसके साथ ही एक सिक्का भी अवश्य दान करें।

शनि देव के इन मंत्रों का करें जाप

अगर कुंडली में शनि की महादशा चल रही है, तो शनि के इन मंत्रों का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और शनि दोष के दुष्प्रभाव को हो जाते हैं।

कुंडली से शनि दशा के लिए किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के शनिवार के दिन इन मंत्रों का जाप करना शुरू करना चाहिए। इस मंत्र का जाप आप शाम के समय करें। शाम को स्नान आदि करने के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। इसके बाद एक आसन बिछाकर उत्तर या फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं और शनिदेव का ध्यान करते हुए इस मंत्र का 108 बार जाप करें।

शनि मंत्र-  ॐ शं शनैश्चराय नम:

करें ये पाठ

शनि मंत्र के साथ शनि स्तोत्र का जाप करना लाभकारी सिद्ध हो सकता है। इसलिए शनिवार के दिन शनि स्तोत्र में दशरथ कृत शनि स्त्रोत का जाप करें। ये अत्यंत लाभकारी माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस स्त्रोत की रचना भगवान राम के पिता दशरथ जी ने शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए की थी।

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।