Mukta Devi Temple Musanagar: हिंदू शास्त्रों में कई दिव्य मंदिरों का उल्लेख देखने को मिलता है। जिनकी कथाएं या मान्यताएं लोगों को हैरत में डाल देती है बल्कि काफी रहस्यमयी मानी जाती है। एक ऐसा ही मंदिर है जो अपने चमत्कारों के लिए जाना जाता है।  मान्यताओं के अनुसार, इस मंदिर में देवी मां दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं। नवरात्रि के दिनों में मां के दर्शनों के लिए काफी भीड़ लगती है। कहा जाता है कि इस मंदिर में मां के दर्शन करने मात्र से व्यक्ति के हर एक कष्ट दूर हो जाते हैं। बता दें कि यह मंदिर उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात के मूसानगर में स्थित है। इस मंदिर को मुक्तेश्वरी मंदिर के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में…

मुक्तेश्वरी देवी 3 बार बदलती है अपना स्वरूप

मान्यताओं के अनुसार माना जाता है कि मां मुक्तेश्वरी की प्रतिमा दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती हैं। सुबह के समय मूर्ति बाल अवस्था में होती है और दोपहर में युवावस्था और शाम ढलते-ढलते वृद्धावस्था में प्रतीत होती हैं।  

मां सती से भी है संबंध

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह वही स्थान है जहां पर दक्ष प्रजापति के यज्ञ में प्रवेश कर चुकी माता सती का मुकुट यहीं पर गिरा था। मुकुट गिरने के कारण इस जगह का नाम मुकुटेश्वरी पड़ा। इसे 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। समय के साथ इस मंदिर का नाम बदलकर मुक्तेश्वरी हुआ।

दैत्यराज बलि ने कराएं थे 99 यज्ञ

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, दूसरे साम्राज्य में विजय पाने के लिए दैत्यराज बलि ने यहां पर ही 99 यज्ञ के साथ एक अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था। उस समय यहां पर देव यक्ष और राजाओं का निवास होने के कारण इसे देवलोग के समान माना जाता था। तभी से यहां पर यज्ञ, हवन करने की प्रथा चली आ रही है।

मां के शाप से पूरी बारात हो गई थी पत्थर

लोक कथाओं के अनुसार, मुक्ता देवी एक राजा की पुत्री थी, जो काफी सुंदर थी। एक बार राजा ने निश्चय लिया कि वह अपनी पुत्री का विवाह किसी राजकुमार से कर दें। ऐसे में उनका विवाह एक राजकुमार के साथ तय कर दिया गया। वहीं मुक्ता देवी को दुल्हन के रूप में सजाया गया और बाहर हाथी-घोड़ों के साथ बाराती द्वार में पहुंच गए। जब राजा मुक्ता देवी को बुलाने आए, तो उनकी सुंदरता देखकर मोहित हो गए और उन्होंने निश्चय किया कि वह अपनी बेटी से विवाह करेंगे। ऐसे में मुक्ता देवी काफी क्रोधित हुई और उन्होंने अपने पिता को पत्थर के होने का शाप दे दिया। इसके साथ ही जो बारात आई थी वो भी पूरी पत्थर की हो गई। आज भी मंदिर के प्रांगण में पत्थर की मूर्तियां मौजूद है। माना जाता है कि यह पत्थर करीब 5 हजार साल पुराने हैं।

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