Shab- e- Barat 2024: शब-ए-बारात  मुस्लिम समुदाय के लिए काफी महत्वपूर्ण पर्व मनाया जाता हैं। इसे शबे बारात, रबी में लैलातुल बारात, इंडोनेशिया और मलेशिया में निस्फ़ स्याबान जैसे नामों से भी जाना जाता है। दरअसल, इस पर्व को क्षमा की रात के रूप में मनाते हैं। इस दिन अल्लाह से क्षमा मांगने के साथ अपनी पूर्वजों की क्रबों के पास जाकर दुआ मांगते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं कि उन्हें जन्नत नसीब हो। इस्लामिक कैलेंडर का 8वां महीना शबाना का होता है और इसी महीने की 15वीं तारीख को शब ए बारात मनाया जाता है। इस साल शब-ए-बारात 25 फरवरी, रविवार को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं शब-ए-बारात का महत्व के बारे में और इस दिन क्या किया जाता है।

कब होता है शब-ए-बारात ?

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, शब-ए -बारात शाबान महीने की 14 और 15 वीं तारीख के बीच की रात को मनाया जाता है।  इसी के कारण निस्फ़ शाबान भी कहा जाता है। यह रात 14 की रात को शुरू होती है और 15 शाबान भोर को समाप्त हो जाती है। इस साल शब-ए-बारात 25 फरवरी, रविवार को पड़ रहा है।

शब-ए-बारात की दुआ जरूर होती है कबूल

कहा जाता है कि ये उन पांच रातों में से एक होती है जिसमें अल्लाह जरूर अपने बंदों की दुआ को सुनता है। बता दें किशब-ए-बारात  के अलावा पहली शुक्रवार की रात दूसरी ईद-उल-फितर से पहले की रात , तीसरी ईद-उल-अधा से पहले की रात चौथी पहली रात रज्जब की रात की दुआ अल्लाह कबूल करते हैं।

कैसे मनाते हैं शब-ए-बारात ?

इस्लाम धर्म में शब-ए-बारात का विशेष महत्व है।  इस दिन रात के समय मुस्लिम समुदाय के लोग अल्लाह से क्षमा मांगते हैं। इसी के कारण इसे क्षमा की रात भी कहा जाता है। इसके साथ ही लोग अपने पूर्वजों की क्रबों के पास जाकर सजाते हैं और अल्लाह से दुआ करते हैं कि उन्हें जन्नत नसीब हो।

शब-ए-बारात में रोजा रखने की परंपरा

मुस्लिम समुदाय के लिए शब ए बारात में दो दिन रोजा रखने का भी रिवाज है। पहला शब-ए-बारात के दिन और दूसरा अगले दिन रखा जाता है। इस रोजा को फर्ज नहीं, बल्कि नफिल रोजा कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन रोजा रखने से व्यक्ति के पिछली शब-ए-बारात  से इस शब-ए-बारात   तक के सभी गुनाह माफ हो जाते हैं।

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