Sawan Dusra Somwar: सावन के महीने का हिंदू धर्म में खास महत्व है। क्योंकि यह महीना देवो के देव महादेव को समर्पित होता है। वहीं श्रावण मास में भगवान शिव पृथ्वी लोक पर अपने ससुराल में आते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस महीने में थोड़ी सी पूजा से ही भगवान शिव प्रसन्न हो जाते हैं और भक्तों के सारे दुख दूर कर देते हैं। वहीं सुख- समृद्धि की प्राप्ति होती है। साथ ही आपको बता दें कि सावन के महीने में हर सोमवार का खास महत्व होता है। सावन का दूसरा सोमवार कल 21 जुलाई को है। वहीं इस दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि योग बन रहा है। जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। इन योगों में पूजा करने का दोगुना फल मिलता है। आइए जानते हैं तिथि और शुभ मुहूर्त…
पापी व्यक्ति दीर्घायु और दिन पर दिन अमीर क्यों होता जाता है? प्रेमानंद महाराज ने बताया ये कारण
सावन का दूसरा सोमवार जलाभिषेक मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार सावन सोमवार जलाभिषेक शुभ मुहूर्त 21 जुलाई को सुबह 4:15 मिनट से लेकर सुबह 4:56 मिनट तक रहेगा। इस मुहूर्त में आप भगवान शिव का रुद्राभिषेक और जलाभिषेक कर सकते हैं।
बन रहे हैं ये शुभ योग
सावन के दूसरे सोमवार पर अमृत सिद्धि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहे हैं। इन योग में पूजा करने का दोगुना फल प्राप्त होता है।
भगवान शिव पर अर्पित करें ये चीजें
सावन के दूसरे सोमवार को भगवान शिव को केला, सेब, अमरूद और बेलपत्र जैसे फल चढ़ाए जा सकते हैं। इसके अलावा, धतूरा और बेर भी शिवजी को प्रिय माने गए हैं, इन्हें भी आप भोलेनाथ को चढ़ा सकते हैं। वहीं भोलेनाथ को तुलसी के पत्ते, केतकी के फूल, शंख से जल, सिंदूर, हल्दी, लाल रंग के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
भोलेनाथ के मंत्र
1- ॐ नमः शिवाय
2- ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः
3- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
4- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहितन्नो रुद्रः प्रचोदयात्!
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥