हिंदू पंचांग अनुसार हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मासिक शिवरात्रि मनाई जाती है। जो इस बार 19 जुलाई को है। सावन शिवरात्रि पर शिव के उपासक विशेष पूजा अर्चना करते हैं। मान्यता है इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। शिवरात्रि पर भगवान शिव का जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करना भी विशेष रूप से फलदायी माना जाता है। जानिए शिवरात्रि व्रत पूजा विधि, मुहूर्त और कथा…
शिवरात्रि पूजा विधि: इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर शुद्ध हो जाएं। घर पर या मंदिर में जाकर शिव की पूजा करें। शिवलिंग का जलाभिषेक करें। शिव को जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर, भांग, धतूरा, गंगाजल, भांग, सफेद फूल, सफेद चंदन, धूप आदि अर्पित करना चाहिए। भोलेनाथ के आगे दीपक और धूपबत्ती दिखाएं। शिव आरती उतारें। गुड़ से बना पुआ, हलवा और कच्चे चने का भोग लगाएं, बाकी प्रसाद स्वरूप लोगों में बांट दें।
शिवरात्रि व्रत विधि: शिवरात्रि व्रत रखने वालों को एक समय ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। इस दिन सुबह नित्य कर्म के बाद पूरे दिन व्रत करने का संकल्प लें। शिव की पूजा करें। फिर शाम को एक बार फिर से स्नान करने के बाद घर पर ही या मंदिर में जाकर पूजा करनी चाहिए। शिव की पूजा के लिए सबसे उत्तम समय प्रदोष काल या फिर रात्रि का माना गया है। इस व्रत को अगले दिन तोड़ना चाहिए। व्रत का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए भक्तों को सूर्योदय व चतुर्दशी तिथि के खत्म होने के मध्य ही व्रत का समापन करना चाहिए।
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शिवरात्रि पूजा मुहूर्त:
शिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त (निशिता काल पूजा समय)- 12:07 AM से 12:10 AM, जुलाई 20 तक
20 जुलाई को शिवरात्रि व्रत पारण समय- 05:36 AM, जुलाई 20
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – 07:19 PM से 09:53 PM
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – 09:53 PM से 12:28 AM, जुलाई 20
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – 12:28 AM से 03:02 AM, जुलाई 20
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:02 AM से 05:36 AM, जुलाई 20
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 19, 2020 को 12:41 AM बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – जुलाई 20, 2020 को 12:10 AM बजे
सावन की शिवरात्रि की पूजा ग्रहों की अशुभता को दूर करने में सक्षम है। जिन लोगों पर शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या चल रही है। उन लोगों को आज के दिन भगवान शिव की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।
तुलसी को भगवान विष्णु ने पत्नी रूप में स्वीकार किया है. इसलिए तुलसी से शिव जी की पूजा नहीं की जाती है. तुलसी को शिवलिंग पर नहीं चढ़ाना चाहिए
शिव को जल, दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर, भांग, धतूरा, गंगाजल, भांग, सफेद फूल, सफेद चंदन, धूप आदि अर्पित करना चाहिए
प्रदोष काल में जलाभिषेक करना काफी शुभ रहता है। ऐसे में 19 जुलाई की शाम के समय 7 बजकर 28 मिनट से रात 9 बजकर 30 मिनट तक प्रदोष काल में जलाभिषेक किया जा सकता है।
मान्यता है कि सावन शिवरात्रि पर रुद्राभिषेक करने से भक्त के समस्त पापों का विनाश भोले बाबा कर देते हैं। कालसर्प दोष से मुक्ति के लिये शिव मंदिर में जाकर षोडषोपचार से भगवान भोलेनाथ की पूजा करें और धतूरा चढ़ाकर 108 बार शिवमंत्र का जाप करें। साथ ही चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा भी शिवलिंग पर चढायें, भोले बाबा आपको दोष से मुक्त करेंगें। यदि जातक शारीरिक पीड़ा से निवारण चाहते हैं तो इस दि महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना भी लाभकारी होता है।
सावन महीने में आने वाली शिवरात्रि को श्रावणी शिवरात्रि भी कहते हैं. ये शिवरात्रि अत्याधिक शुभ मानी जाती है. उत्तर भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों, काशी विश्वनाथ व बद्रीनाथ धाम में इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. इस बार कोरोना वायरस के कारण भक्त मंदिरों में पूजा नहीं कर पाएंगे. शिव भक्त इस बार शिवरत्रि के दिन अपने-अपने घरों में ही गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक कर शिव का आशीर्वाद प्राप्त करेंगे.
शिवरात्रि पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त (निशिता काल पूजा समय)- 12:07 AM से 12:10 AM, जुलाई 20 तक
ध्यान रहे शिवरात्रि के दिन काले वस्त्र धारण न करें और न ही खट्टी चीजों का सेवन करें। पूरा दिन व्रत कर शाम को भगवान शंकर और माता पार्वती की पूजा करने के साथ आरती गाए और दीप जलाने के बाद व्रत को खोलें। इस दिन घर में मांस मदीरा न लाएं।
सावन शिवरात्रि के व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है। इस दिन व्रत रखने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। सावन शिवरात्रि के दिन व्रत रखने से क्रोध, ईष्र्या, अभिमान और लोभ से मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन शिवरात्रि का व्रत कुंवारी कन्याओं के लिए श्रेष्ठ माना गया है। मान्यता है कि यह व्रत करने से उन्हें मनचाहा वर प्राप्त होता है।
-ग्रहों के सारे कुप्रभाव नष्ट हो जाते हैं.
- शोक, मृत्यु के संकट टल जाते हैं.
-लंबे समय से चल रहे रोगों से मुक्ति मिलती है.
-पुराने कर्ज से मुक्ति मिलती है.;
शास्त्रों में लिखित है कि ‘शिवः अभिषेक प्रियः’ अर्थात शिव को अभिषेक अति प्रिय है। माना जाता है कि रुद्राभिषेक में सृष्टि की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण करने की शक्ति है। पुत्र प्राप्ति से लेकर रोग से छुटकारा और आर्थिक संकट से निजात दिलाने में भी रुद्राभिषेक को कारगर माना गया है। बता दें कि मंत्र उच्चारण के साथ जल, दूध, पंचामृत, शहद, गन्ने का रस, घी या गंगाजल से अभिषेक किया जाता है। रुद्राभिषेक में भगवान शिव के रौद्र रूप की पूजा होती है जो सभी बाधाओं और रुकावटों को दूर करता है।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
सावन शिवरात्रि के मौके पर भोले की सच्चे मन से आराधना करने पर मनोवांछित मुराद पूरी होती है। शिवरात्रि के दिन साफ वस्त्र धारण करके मंदिर जाकर शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस वर्ष कोरोना संकट के कारण बहुत से मंदिरों में श्रद्धालुओं के लिए कपाट बंद रखे गए हैं ऐसे में घर पर ही शिवजी की आराधना करें। शिवजी के अभिषेक के लिए शिवपुराण में बताया गया है कि दूध, दही, शहद, घी, चीनी, इत्र, चंदन, केसर और भांग का प्रयोग करना चाहिए। इस सभी वस्तुओं से अभिषेक का अलग-अलग परिणाम बताया गया है।
भगवान शिव के मंत्र
नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥
मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय
मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय
श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥
अवन्तिकायां विहितावतारं मुक्तिप्रदानाय च सज्जनानाम्।
अकालमृत्यो: परिरक्षणार्थं वन्दे महाकालमहासुरेशम्।।
भगवान शंकर की पूजा के समय शुद्ध आसन पर बैठकर पहले आचमन करें। तत्पश्चात आसन की शुद्धि करें। पूजन-सामग्री को अपने पास रखकर रक्षादीप प्रज्ज्वलित कर लें। अब स्वस्ति-पाठ करें। स्वस्ति पाठ- स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा:, स्वस्ति ना पूषा विश्ववेदा:, स्वस्ति न स्तारक्ष्यो अरिष्टनेमि स्वस्ति नो बृहस्पति र्दधातु। इसके बाद पूजन का संकल्प कर भगवान गणेश एवं माता पार्वती का स्मरण करें। यदि आप रूद्राभिषेक, लघुरूद्र, महारूद्र आदि विशेष अनुष्ठान कर रहे हैं, तब नवग्रह, कलश, षोडश-मात्रका का भी पूजन करना चाहिए। अब भगवान शिव का पूजन करते समय उनकी प्रतिमा को एक थाली में बिठाएं। शिव की प्रतिमा को पहले गंगाजल स्नान, दही स्नान, घी स्नान और फिर शहद से स्नान कराएं। इसके बाद भगवान का एक साथ पंचामृत स्नान कराएं। अब शिव को वस्त्र, फूल, इत्र, माला और बेल पत्र चढ़ाएं। फिर नैवेद्य (भोग) लगाएं। नैवेद्य के बाद फल, पान-नारियल, दक्षिणा चढ़ाकर शिव की आरती करें। आखिर में क्षमा-याचना करें। क्षमा मंत्र: आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम, पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
19 जुलाई की सुबह 7 बजकर 52 मिनट तक का समय जलाभिषेक के लिए शुभफलदायी रहेगा। प्रदोष काल में जलाभिषेक करना काफी शुभ रहता है। ऐसे में 19 जुलाई की शाम के समय 7 बजकर 28 मिनट से रात 9 बजकर 30 मिनट तक प्रदोष काल में जलाभिषेक किया जा सकता है।
देव मूर्ति के स्नान के लिए तांबे का पात्र, लोटा, दूध, अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, चावल, अष्टगंध, दीपक, तेल, रुई, धूपबत्ती, चंदन, धतूरा, अकुआ के फूल, बिल्वपत्र, जनेऊ, फल, मिठाई, नारियल, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद व शक्कर), सूखे मेवे, पान, दक्षिणा।