Pradosh Vrat 2025: ज्योतिष पंचांग के मुताबिक इस वर्ष सावन की शुरुआत 11 जुलाई से हो गई है और 9 जुलाई को समाप्त होंगे। सावन में महादेव और मां पार्वती की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है। वहीं सावन में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व रखता। आपको बता दें कि सावन का पहला भौम प्रदोष व्रत 22 जुलाई यानी कल मनाया जाएगा। वहीं मंगलवार के दिन पड़ने के चलते यह भौम प्रदोष व्रत कहलाएगा। वहीं इस दिन द्विपुष्कर योग भी बन रहा है, जिससे इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। वहीं इस योग में पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। आइए जानते हैं तिथि और पूजा का शुभ मुहूर्त…
भौम प्रदोष व्रत तिथि 2025
वैदिक पंचांग के अनुसार सावन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 22 जुलाई को सुबह 07 बजकर 04 मिनट पर शुरू होगी। वहीं, 23 जुलाई को त्रयोदशी तिथि सुबह 04 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी।
जलाभिषेक का शुभ मुहूर्त
भगवान शिव की पूजा प्रदोष काल में किया जाने का विधान है। इसलिए इस दिन पूजा के लिए प्रदोष काल का समय शाम 7:18 बजे से रात 9:22 बजे तक शुभ रहेगा। साथ ही दिन के अन्य शुभ मुहूर्त इस प्रकार हैं:
ब्रह्म मुहूर्त: सुबह 4:14 से 4:56 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 12:00 से 12:55 बजे तक
बन रहा ये शुभ योग
इस दिन द्विपुष्कर योग बन रहा है। यह योग 05:37 ए एम से 07:05 ए एम तक रहेगा।
भोलेनाथ पर अर्पित करें ये चीजें
सावन के दूसरे सोमवार को भगवान शिव को केला, सेब, अमरूद और बेलपत्र जैसे फल चढ़ाए जा सकते हैं। इसके अलावा, धतूरा और बेर भी शिवजी को प्रिय माने गए हैं, इन्हें भी आप भोलेनाथ को चढ़ा सकते हैं। वहीं भोलेनाथ को तुलसी के पत्ते, केतकी के फूल, शंख से जल, सिंदूर, हल्दी, लाल रंग के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए।
भोलेनाथ के मंत्र
1- ॐ नमः शिवाय
2- ॐ नमो भगवते रुद्राय नमः
3- ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् |उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ||
भगवान शिव की आरती
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥