वैदिक ज्योतिष अनुसार जन्मकुंडली में कुछ ऐसे अशुभ दोष होते हैं। जिनकी वजह से मनुष्य को जिंदगीभर संघर्ष करना पड़ता है। कालसर्प दोष का निर्माण राहु- केतु ग्रह के कारण होता है। जब भी व्यक्ति की जन्मकुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं। तो कालसर्प दोष का निर्माण होता है। इस कारण व्यक्ति को कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

आपको बता दें कि सावन का महीना शुरू हो गया है। जिसमें भगवान शिव के रुद्राभिषेक करने का प्रमुख विधान है और ज्योतिष के अनुसार सभी ग्रहों पर भगवान शिव का आधिपत्य है। इसलिए सावन में रुद्राभिषेक करने से कालसर्प दोष के अशुभ प्रभाव से मुक्ति पाई जा सकती है। आइए जानते हैं कालसर्प दोष के प्रकार और रुद्राभिषेक करने की सही विधि…

कालसर्प दोष के लक्षण: ज्योतिष अनुसार जन्मकुंडली में कालसर्प दोष होने से व्यक्ति को भाग्य का साथ नहीं मिलता है। करियर में बाधा आती है। जातक कोई गंभीर बीमारी से ग्रसित हो जाता है। शादी होने में रुकावटें आती हैं। व्यापार में नुकसान होता है। कर्जा अधिक हो जाता है। यही सब लक्षण कालसर्प दोष में होते हैं।

जानिए कितने प्रकार के होते हैं कालसर्प दोष:
वैदिक ज्योतिष के अनुसार कालसर्प दोष मुख्यतय 12 प्रकार के होते हैं। अनंत, काल सर्प दोष, कुलिक काल सर्प दोष, वासुकी काल सर्प दोष, शंखपाल काल सर्प दोष, पद्म काल सर्प दोष, महापद्म काल सर्प दोष, तक्षक काल सर्प दोष, कर्कोटक काल सर्प दोष, शंखनाद काल सर्प दोष, घातक काल सर्प दोष , विषैला काल सर्प दोष , शेषनाग काल सर्प दोष।

दोष से मुक्ति पाने के लिए इस विधि से करें रुद्राभिषेक:
शास्त्रों में कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए वैसे नागपंचमी का दिन निर्धारित किया है। लेकिन वैसे कालसर्प दोष के निवारण के लिए सोमवार, सावन का सोमवार, पंचमी तिथि और शिवरात्रि और मास की शिवरात्रि पर कर सकते हैं। सावन के सोमवार पर शिव जी की विधिवत और सच्चे मन से अराधना करने से किसी भी प्रकार के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। कालसर्प दोष की पूजा किसी योग ब्राह्राण से शिव जी के मंदिर में कराएं। साथ ही वो मंदिर गंगा किनारे हो तो अच्छा है।

साथ ही राहु और केतु के बीज मंत्र का जाप करें। वहीं गणेष जी और सरस्वती जी की भी पूजा करें क्योंकि भगवान गणेश केतु की पीड़ा शांत करते हैं और देवी सरस्वती राहु ग्रह के प्रकोप से रक्षा करती हैं। भैरवाष्टक का नित्य पाठ करने से काल सर्प दोष से पीड़ित लोगों को शांति मिलती है। इसके साथ ही भगवान शिव का दूध, दही, शहद और से रुद्राअभिषेक करें। साथ ही  महामृत्युंजय मंत्र: का जाप करें।

महामृत्युंजय मंत्र: ऊँ हौं ऊँ जूं स: भूर्भुव: स्व: त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवद्र्धनम्।

उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् भूर्भुव: स्वरों जूं स: हौं ऊँ।।