Shani Transit 2020, Shani Rashi Parivartan: शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक गतिशील रहते हैं। इसीलिए उन्हें मन्दगामी भी कहते हैं क्योंकि एक घर में इतने दिनों तक रहने वाले शनि अकेले ग्रह हैं। उनका तीव्र प्रभाव एक राशि पहले से एक राशि बाद तक पड़ता है। यही स्थिति साढ़े साती कहलाती है। जब गोचर में शनि किसी राशि से चतुर्थ व अष्टम भाव में होता है तो यह स्थिति अढैया कहलाती है। अगर शनि तृतीय, षष्ठ और एकादश भाव में हों तो साढ़ेसाती व अढ़ैया करिश्माई परिणाम की साक्षी बनती हैं और तब यह योग जीवन को पंख लगाकर नया आकाश देता है। पर अन्य को शुभ परिणाम नहीं मिलते।

अगर शनि अष्टम व द्वादश भाव में है तो अपार कष्ट प्राप्त होता है। साढ़ेसाती लगभग साढ़ेसात साल और अढ़ैया ढाई साल चलती है। हर किसी के जीवन साढ़ेसाती हर 30 साल में अवश्य आती है। शनि की महादशा 19 साल की होती है। शनि का रत्न वैदुर्य है जिसे नीलम या ब्लू सफ़ायर भी कहते है।

24 जनवरी 2020 को शनि के मकर में गोचर करने से राशियों पर क्या पड़ रहा है प्रभाव:
मेष- कोई सीधा प्रभाव नहीं
वृष- शनि की अढ़ैया से मुक्ति
मिथुन- शनि की अढ़ैया का आरंभ
कर्क-कोई सीधा प्रभाव नहीं
सिंह- कोई सीधा प्रभाव नहीं
कन्या- शनि की अढ़ैया से मुक्ति
तुला- शनि की अढ़ैया का आरंभ
वृश्चिक- शनि की साढ़ेसाती से मुक्ति
धनु- शनि की साढ़े साती
मकर- शनि की साढ़ेसाती
कुंभ- शनि की साढ़ेसाती का आरंभ
मीन- कोई सीधा प्रभाव नहीं

बेहद शुभ हैं शनि इनके लिए: जिसकी कुंडली में शनि देव तृतीय, षष्ठ अथवा एकादश भाव में आसीन हों या स्वग्रही हों तो फ़र्श से अर्श पर बिठाने का माद्दा रखते हैं। इनकी तृतीय, सप्तम व दशम दृष्टि होती है। शनि यदि मूल त्रिकोण राशि में हों या उच्च के हों तो “शश” नामक पंचमहापुरुष योग बनता है। शनि अगर बृहस्पति की राशि में विराजमान हों तो अपार मान-प्रतिष्ठा, नाम व यश प्रदान करता है। शनि, बृहस्पति और शुक्र से मिलकर अंशावतार योग बनता है, जो व्यक्ति को विलक्षण बना देता है।

अपनी दशा में शनि इन्हें देते हैं नकारात्मक फल: राहु या मंगल के साथ होने पर शनि दुर्घटना की संभावना बलवती करता है। सूर्य के बैठ कर पिता या पुत्र को कष्ट देता है। वृश्चिक में आसीन होकर या चन्द्रमा के संग बैठ कर भौतिक असफलताओं से नवाज़कर वैराग्य देता है। जिनका शनि अष्टम या द्वादश भाव में हो, शनि अपनी साढ़ेसाती व अढ़ैया में ऐसी की तैसी कर देते हैं। इसके अतिरिक्त लग्न, द्वितीय और पंचम भाव का शनि भी साढ़ेसाती और अढ़ैया में तनाव का सबब बनता है।

शनि जनित रोग: शनि को डायबिटिज, वात रोग यानी वायु विकार, भगंदर, गठिया, टीबी, कैन्सर, त्वचा रोग, यौन समस्या, फेफड़ों के विकार, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।

शनि और करियर: अध्यात्म, ज्योतिष, योग, राजनीति और कानून संबंधी विषयों पर शनि का सीधा प्रभाव होता है। तृतीय, षष्ठ, नवम, दशम या एकादश भाव में यदि शनि हो तो उपरोक्त क्षेत्र में अपार सफलता प्राप्त होती है।

शनि शांति का क्या है उपाय: शनि न्यायधीश हैं । लिहाज़ा नकारात्मक कर्मों पर क़ाबू पाना शनि के कुप्रभाव से बचने की पहली शर्त है। नेत्रहीनों की सेवा, वृद्धों, दिव्यांगों व असहायों की मदद शनि के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए बेहद मुफ़ीद माना गया है। शनि का दान, शनिवार का व्रत, महामृत्युंजय मंत्रों का उपांशु (फुसफुसा कर) जप, हनुमान चालीसा व सुन्दरकांड का सस्वर पाठ शनि जनित कष्टों से जूझने में आत्मिक बल प्रदान करता है, ऐसा मान्यतायें कहती हैं। शनि सबसे पहले लंग्स यानी फेफड़ों, त्वचा, जोड़ों और माँसपेशियों को प्रभावित करते हैं। इसलिए शनि की साढ़ेसाती और अढ़ैया में धूम्रपान, तम्बाकू और किसी भी प्रकार का नशा समस्या को बढ़ाता है। मान्यताओं के अनुसार हनुमान चालीसा का सस्वर पाठ फेफड़ों को बल प्रदान करता है। शनि के प्रभाव में आनेवाले वालों को इसके अलावा भी वे तमाम उपाय करने चाहिए, जिनसे फेफड़ों, हड्डियों और माँसपेशियों को लाभ पहुँचे, यथा- प्राणायाम, योगासन, कसरत, दौड़ इत्यादि। दूध का पान और नीम के पत्तों का सेवन भी लाभदायक है।

शनि का दान: तेल से बने खाद्य पदार्थ, खट्टे पदार्थ, तेल, गुड़, काला कपड़ा, तिल, उड़द, लोहे, चर्म और काले रंग की वस्तुएं शनि के दान के लिए मुफ़ीद मानी जाती हैं।