हर महीने के शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष के चौथे दिन संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है और कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक, माघ महीने के शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली चतुर्थी बहुत ही शुभ होती है।
हिन्दू धर्म के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी को संकट हारा, सकट चौथ आदि नामों से भी जाना जाता है। बता दें कि यदि किसी माह में मंगलवार को यह तिथि पड़ती है तो इसे अंगारकी चतुर्थी कहा जाता है। वैसे अंगारकी चतुर्थी 6 महीने में एक बार ही आती है और इसे दक्षिण भारत में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
मान्यताओं के अनुसार, संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा-आराधना की जाती है। इस दिन प्रथम पूज्य गणेश जी की स्तुति करने से घर में फैली नकारात्मकता ख़त्म होती है और सुख-शांति का आगमन होता है। धर्म के जानकारों के मुताबिक गणपति बप्पा घर में आ रही सभी समस्याओं को दूर करते हैं और हमारी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं। आपको बता दें कि पूरे साल में संकष्टी चतुर्थी के कुल 13 व्रत किए जाते हैं। आइए जानते हैं हिंदी कैलेंडर के अनुसार यह तिथि कब पड़ रही है और इसकी क्या विशेषताएं हैं-
दिनांक: 19 मई, 2022, गुरुवार
हिंदी महीना: ज्येष्ठ
तिथि: चतुर्थी
पक्ष: कृष्ण पक्ष
चतुर्थी तिथि आरंभ: 18 मई, 2022 की रात 11 बजकर 38 मिनट से
चतुर्थी तिथि समाप्त: 19 मई, 2022 की शाम 08 बजकर 25 मिनट तक
आपको बता दें कि यह तिथि 18 मई, 2022 की रात से शुरू होगी, हिन्दू धर्म में कोई भी तिथि उदया तिथि से माना जाता है, अर्थात सूरज के निकलने के बाद से मनाई जाती है। इसलिए संकष्टी चतुर्थी 19 मई, 2022 को सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक मनाई जाएगी।
संकष्टी चतुर्थी के साघ्य योग
आपको बता दें कि 18 मई, 2022 की शाम 06 बजकर 43 मिनट से 19 मई, 2022 की दोपहर 02 बजकर 57 मिनट तक साघ्य योग बन रहा है। यह दिन सीखने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। ऐसे में कोई विद्या या विधि सीखना चाहता है तो यह योग बहुत ही उत्तम है। कहा जाता है कि साघ्य योग के दौरान कोई भी चीज़ सीखने और करने में बहुत मन लगता है और अंततः उसमें सफलता हासिल होती है।
संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
- जो लोग इस दिन व्रत करते हैं, वह सूर्योदय से पहले सुबह उठकर स्नान करें, फिर साफ़ स्वच्छ लाल रंग के कपड़े पहनें।
- भगवान गणेश का पूजन शुरू करें। ध्यान रहे कि पूजा के समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए। पूजा के समय मां दुर्गा की प्रतिमा या फोटो अवश्य रखें क्योंकि ऐसा करना बहुत शुभ माना जाता है।
- पहले भगवान गणेश की प्रतिमा को फूलों से अच्छी तरह सजाएं।
- फिर पूजन सामग्री जैसे कि तिल, गुड़, फूल, धूप, चंदन, तांबे के कलश में शुद्ध जल और प्रसाद के रूप में केले या नारियल रखें।
- भगवान गणेश को रोली लगाएं, फिर फूल तथा जल अर्पित करें। फिर धूप या दीपक जलाकर निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करें।
गजाननं भूत गणादि सेवितं,
कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्,
नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्।।
इसके बाद भगवान को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं। आप मूंगफली, खीर, दूध आदि ले सकते हैं। इन चीज़ों के अलावा किसी अन्य चीज़ का सेवन न करें। फिर शाम के समय चांद निकलने से पहले भगवान गणेश की पूजा करें और संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा का पाठ करें। पूजा ख़त्म करने के बाद प्रसाद वितरण करें। फिर रात में चंद्रमा के दर्शन के बाद अपना व्रत खोलें।