जयनारायण प्रसाद
आस्था के सबसे बड़े पर्व के रूप में ख्यात गंगासागर मेले को अब महज कुछ रोज बाकी हैं, लेकिन प्रशासनिक तौर पर चहल-पहल तेज हो गई है। कोलकाता से 135 किमी दूर गंगासागर मूलत: एक द्वीप है, जिसे सागरद्वीप के नाम से जाना जाता है। सागरद्वीप में गंगासागर मेला 30 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में लगता है।
गंगासागर मेले के अतीत के बारे में ठीक-ठीक बता पाना मुश्किल है। एक कथा के अनुसार, गंगा हिमालय पर्वत से निकल कर सात धाराओं-गंगा, यमुना, सरस्वती, रथस्था, सरयू, गोमती और गंडक में बहती और राजा भगीरथ के समस्त पूर्वजों को मोक्ष प्रदान कराती हुई आखिर में सागर में समाहित हो गई। ‘गंगा’ और ‘सागर’ के इसी संगमस्थल को ‘गंगासागर’ कहा गया है। गंगासागर का एक छोर बंगाल की खाड़ी है, तो दूसरा छोर बांग्लादेश है। सुंदरवन के दुर्गम और हिंसक जानवर वाले इलाके को छूता हुआ अथाह जलराशि वाला यह संपूर्ण क्षेत्र तकरीबन 27,706 वर्ग किलोमीटर तक फैला है। हर साल 14 जनवरी को मकर संक्रांति के मौके पर लगने वाला गंगासागर मेला दरअसल बाबा कपिलमुनि के मंदिर को केंद्र में रखकर लगता है। कपिलमुनि को विष्णु का चौबीसवां अवतार भी माना गया है। इस बारे में एक कथा प्रचलित है कि कपिलमुनि के शाप देने से राजा सगर के साठ हजार पुत्र भस्म हो गए थे। महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात जब भीष्म पितामह शर-शैय्या पर सोए थे, तब उनसे मिलने वालों में कपिलमुनि के नाम का उल्लेख मिलता है।
कपिलमुनि मंदिर का इतिहास बताना वैसे तो मुश्किल है। लोकोक्ति है कि चौदह सौ वर्ष पहले सन 437 में यह मंदिर बना। इस मंदिर में कपिलमुनि नामक एक देवतुल्य सिद्ध महात्मा की मूर्ति है। कहते हैं कि जयपुर राज्य के ‘गुरु संप्रदाय’ ने कपिलमुनि मंदिर को प्रतिष्ठित किया। बाद में रामानंदी संप्रदाय के संन्यासियों ने इसे अपना आराध्य-स्थल बनाया। तब से अयोध्या की हनुमानगढ़ी से इस मंदिर का संचालन होता है। वैसे गंगासागर में बाबा कपिलमुनि का यह चौथा मंदिर हैं। सागरद्वीप की अथाह जलराशि में तीन मंदिर पहले ही डूब चुके हैं। अब सागर से थोड़ी दूर सुरक्षित जगह पर यह मंदिर हैं। इस बार 14 जनवरी को गंगासागर मेले में करीब 30 लाख तीर्थयात्रियों के जुटने की संभावना है। यह भीड़ 12 जनवरी से दिखने लगेगी। गंगासागर मेले का सारा दारोमदार दक्षिण चौबीस परगना जिले पर है। जिलाधिकारी डॉ. पी उलगानाथन का कहना है कि इस दफा देश में कहीं भी कुंभ या अर्द्धकुंभ नहीं हैं, इसलिए दूरदराज के तीर्थयात्री गंगासागर मेले में ही आएंगे। इसके लिए मेला परिसर में 12 ड्रोन, 1000 सीसीटीवी कैमरे और 70 गोताखोरों की एक टीम मुस्तैद रहेगी।
जिलाधिकारी का इस बार पूरा जोर गंगासागर मेले को दुर्घटना रहित बनाने का है। अग्निकांड से निपटने का भी पुख्ता इंतजाम है। प्रत्येक तीर्थयात्री के लिए पांच लाख रुपए की बीमा की भी व्यवस्था है। बीमा का लाभ किसी तीर्थयात्री के असमय मौत पर उसके परिवारवालों को मिलेगा। कहते हैं कि पहले गंगासागर मेले तक पहुंचने के लिए नदी, समुद्र और रास्तों से होते हुए तीन दिन लग जाते थे। नदी और समुद्र पार करते समय तब जंगली जानवरों का डर भी खूब रहता था। सन 1951 पश्चिम बंगाल के पहले मुख्यमंत्री डॉ. विधानचंद्र राय ने जब गंगासागर का दौरा किया, तो इलाके की स्थिति बदली। 1954 में आचार्य बिनोवा भावे और 1979 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब गंगासागर स्नान को आए, तो मेले का स्वरूप और भी सुलभ हुआ। 1984 में पूर्व मुख्यमंत्री दिवंगत ज्योति बसु ने यहां जिला परिषद का गठन किया। तब से गंगासागर का इलाका काफी उन्नत हो गया है। गंगासागर इलाके में एक संसदीय क्षेत्र है, जिसका नाम है मथुरापुर। इसके अलावा सागर नाम से मात्र एक विधानसभा क्षेत्र है। लड़के और लड़कियों के लिए एक कॉलेज और 20 हाईस्कूल हैं। प्राथमिक स्कूलों की संख्या 140 और मात्र तीन ही हायर सेकेंडरी स्कूल हैं।
बड़े-बड़े कई लांच व नाव हादसे देख चुके गंगासागर मेले तक पहुंचना अब थोड़ा आसान है, पर मकर संक्रांति पर मेले के समय तीर्थयात्री इतने अधिक होते हैं कि जमघट देखकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। तब याद आता है-सब तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार।