पवन गौतम
मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टम तिथि को हुआ था। इसलिए, हर साल इस दिन को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) के रूप में मनाया जाता है। इस साल श्रीकृष्ण के 5248वें जन्मोत्सव का पर्व 30 अगस्त को मनाया जाएगा। श्रीमद्भागवत कथा आयोजन समिति के संस्थापक पं. अमित भारद्वाज के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस बार, 30 अगस्त की सुबह 6:38 बजे से 31 अगस्त सुबह 9:43 बजे तक रोहिणी नक्षत्र रहेगा। अत: अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र एक साथ पड़ रहे हैं और इसे जयंती योग कहा जाता है। इसलिए, इस बार यह संयोग और बेहतर बन पड़ा है।
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब भी जयंती योग ही पड़ा था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के साथ प्राचीन केशवदेव मंदिर व नंदगांव के नंदबाबा मंदिर में भी जन्माष्टमी 30 अगस्त को मनाई जाएगी। दरअसल, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर जन्माष्टमी की तिथि में जिस दिन सूर्योदय पड़ता है, उस दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है। जबकि, प्राचीन केशव देव मंदिर में जन्माष्टमी की तिथि शुरू होने के दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है। ऐसे में हर साल प्राचीन केशव देव में एक दिन पहले जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार एक ही दिन तिथि पड़ेगी। ऐसे में इन दोनों मंदिरों में 30 अगस्त को ही जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ऐसा वर्ष 2015 में और उसके पहले 2001 में हुआ था। छह वर्ष बाद फिर ऐसा संयोग बना है।
उधर, नंदगांव के नंदभवन मंदिर में रक्षाबंधन के आठ दिन बाद कान्हा का जन्मोत्सव मनाया जाता है। नंदगांव स्थित श्री नंदबाबा मंदिर के सेवायत सुशील गोस्वामी बताते हैं कि इस बार रक्षाबंधन के आठ दिन बाद ही जन्माष्टमी की तिथि पड़ रही है। इसलिए, नंदगांव में भी छह साल बाद इसी दिन जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ब्रज के घरों में भगवान को पारंपरिक रूप से नए वस्त्र पहनाकर उनका शृंगार करके झांकियां सजाई जाती हैं। महिलाएं शालिग्राम को एक खीरे में रखकर धागे से बांधकर श्री कृष्ण के जन्म के समय मध्यरात्रि को पंचामृत स्नान कराती हैं। श्रद्धालु श्रीकृष्ण दर्शन के उपरान्त ही अपना व्रत खोलते हैं।
मथुरा स्थित प्राचीन मंदिर भगवान केशवदेव और नगर के मध्य विराजमान ठाकुर द्वारकानाथ द्वारकाधीश मंदिर में इस दिन विशेष दर्शन होते हैं। ब्रज के प्रत्येक घर आंगन में शंख, घंटा व घड़ियाल की ध्वनि ऐसे गूंज उठती है मानो वहां किसी बालक का जन्म हुआ हो। इस प्रकार ब्रज के हर घर-घर में कृष्ण जन्म लेते हैं। भक्ति भावनाओं में विभोर होकर ब्रजवासी नाचने गाने लगते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण का जन्म अर्द्धरात्रि के समय कंस के कारागार में होने के बाद उनके पिता वासुदेव बालक को रात में ही यमुना नदी को पार कर नंद बाबा के यहां गोकुल छोड़ आए थे। इसलिए, कृष्ण जन्म के दूसरे दिन गोकुल में नंदोत्सव मनाया जाता है। भाद्र पद नवमी के दिन समस्त ब्रजमंडल में नंदोत्सव की धूम रहती है। यह उत्सव दधिकांदो के रूप मनाया जाता है। दधिकांदो का अर्थ है दही की कीच। हल्दी मिश्रित दही फेंकने की परम्परा आज भी निभाई जाती है। मंदिर के पुजारी नंदबाबा और यशोदा के वेष में भगवान कृष्ण के पालने को झुलाते हैं। मिठाई, फल व मेवा मिश्री लुटाई जाती हैं।
वृंदावन के विशाल श्री रंगनाथ मंदिर में ब्रज नायक भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव के दूसरे दिन नंदोत्सव की धूम रहती है। नंदोत्सव के दौरान सुप्रसिद्ध लठ्ठे के मेले का आयोजन किया जाता है। धर्मनगरी वृंदावन में श्री कृष्ण जन्माष्टमी जगह-जगह मनाई जाती है किंतु उत्तर भारत के सबसे विशाल मंदिर में नंदोत्सव की निराली छटा देखने को मिलती है। दक्षिण भारतीय शैली के प्रसिद्ध श्री रंगनाथ मंदिर में नंदोत्सव के दिन श्रद्धालु लठ्ठे के मेले की एक झलक पाने को खड़े रहते हैं। जब भगवान रंगनाथ रथ पर विराजमान होकर मंदिर के पश्चिमी द्वार पर आते हैं तो लठ्ठे पर चढ़ने वाले पहलवान भगवान रंगनाथ को दण्डवत कर विजयश्री का आशीर्वाद लेकर लठ्ठे पर चढ़ना प्रारंभ करते हैं। 35 फुट ऊंचे लठ्ठे पर जब पहलवान चढ़ना शुरू करते हैं, उसी समय मचान के ऊपर से कई मन तेल और पानी की धार अन्य ग्वाल-वालों द्वारा लठ्ठे के सहारे गिराई जाती है।
इससे पहलवान फिसलकर नीचे जमीन पर आ गिरते हैं। पुन: भगवान का आशीर्वाद लेकर ग्वाल-वाल पहलवान एक दूसरे को सहारा देकर लठ्ठे पर चढ़ने का प्रयास करते है। तेज पानी की धार और तेल की धार के बीच पूरे जतन के साथ ऊपर की ओर चढ़ने लगते हैं। कई घंटों की मशक्कत के बाद आखिर ग्वाल-वालों को भगवान के आशीर्वाद से लठ्ठे पर चढ़कर जीत हासिल करने का मौका मिलता है। इस रोमांचक मेले को देखकर देश-विदेश के श्रद्धालु अभिभूत हो जाते हैं। ग्वाल-बाल खम्भे पर चढ़कर नारियल, लोटा, अमरूद, केला, फल मेवा व पैसे लूटने लगते हैं। मगर इस वर्ष कोरोना संकट के कारण जिला प्रशासन ने इस प्रकार के आयोजनों की अनुमति नहीं दी है। इसी प्रकार, ब्रहमकुण्ड स्थित हनुमान गढ़ी में नंदोत्सव के दौरान मटकी फोड़ लीला की जाती है। 15 फुट ऊंची मटकी को ग्वाल-बाल पिरामिड बनाकर मटकी को फोड़ते हैं।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन बांके बिहारी के मंदिर में रात्रि अभिषेक ढाई बजे के करीब होता है। प्रात: पांच बजे से मंगला आरती के दर्शन होते हैं। यहां बांके बिहारी जी की निकुंज सेवा होने के कारण आरती में कोई शंख, घंटा या घड़ियाल नहीं बजते है। शांतभाव में आरती होती है। देश-विदेश से लाखों यात्री प्रतिवर्ष यहां आते ही हैं, लेकिन जन्माष्टमी के दिन यहां अलग ही रौनक होती है। वृंदावन में भी जगह-जगह भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर नंदोत्सव मनाया जाता है। ब्रह्म कुण्ड स्थित हनुमान गढ़ी में नंदोत्सव के दौरान मटकी फोड़ लीला का आयोजन किया जाता है। कोरोना दौर के कारण इस बार जन्माष्टमी के सभी आयोजन मंदिरों में तो परंपरागत तरीके से होंगे लेकिन बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश सीमित ही रहेगा। पिछले साल की तरह ज्यादातर श्रद्धालु भगवान श्रीकृष्ण का जन्म अपने घरों पर रह कर ही मनाएंगे।
द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, तब भी जयंती योग ही पड़ा था। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के साथ प्राचीन केशवदेव मंदिर व नंदगांव के नंदबाबा मंदिर में भी जन्माष्टमी 30 अगस्त को मनाई जाएगी। दरअसल, श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर जन्माष्टमी की तिथि में जिस दिन सूर्योदय पड़ता है, उस दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है। जबकि, प्राचीन केशव देव मंदिर में जन्माष्टमी की तिथि शुरू होने के दिन जन्मोत्सव मनाया जाता है। ऐसे में हर साल प्राचीन केशव देव में एक दिन पहले जन्मोत्सव मनाया जाता है। इस बार एक ही दिन तिथि पड़ेगी। ऐसे में इन दोनों मंदिरों में 30 अगस्त को ही जन्मोत्सव मनाया जाएगा। ऐसा वर्ष 2015 में और उसके पहले 2001 में हुआ था। छह वर्ष बाद फिर ऐसा संयोग बना है।
