हिंदू धर्म में अनेक मान्यताएं है जिनका उपयोग हर मांगलिक कार्य के दौरान किया जाता है। जब घर में या मंदिर में पूजा होती है तब देखा जाता है कि भगवान को भोग लगाने के लिए प्रसाद रखा गया है और साथ में हवन कुंड है और उसके पास एक कलश है स्थापित है, जिसपर नारियल रखा गया है। इसी तरह की अनेक वस्तुएं हर पूजा में दिखाई देती हैं, लेकिन इन वस्तुओं का हिंदू धर्म में क्या महत्व है इसे जानने का प्रयास आज हम करने जा रहे हैं कि क्यों भगवान को पूजा के बाद भोग लगाया जाता है, पूजा में कलश का अर्थ क्या होता है, शंख बजाकर ही क्यों पूजा की शुरुआत होती है।

हिंदू धर्म में हर मंगल कार्य के बाद भगवान को भोग लगाया जाता है और उसका वितरण किया जाता है लेकिन क्या हम जानते हैं कि इसके पीछे का कारण क्या है। पौराणिक और धार्मिक ग्रंथ गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि- हे मनुष्य तू जो भी खाता है अथवा जो भी दान करता है। पूजा-यज्ञ करता है या किसी तरह का तप करता है वो सबसे पहले मुझे अर्पित कर। इसी के आधार पर प्रसाद के जरिए ईश्वर के प्रति हम अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं और ये प्रभु के प्रति आस्थावान होने का भाव भी है।

गणेश पुराण के अनुसार स्वास्तिक के चिन्ह को भगवान गणेश का रुप बताया गया है। इस चिन्ह को स्थापित करने से सभी विघ्न खत्म हो जाते हैं। इसके साथ ही ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक के चिन्ह की चार भुजाएं चार युगों, चार दिशाओं, चार वेदों, चार वर्णों, ब्रह्मा जी के चार मुखों का प्रतीक माना जाता है। इस चिन्ह को कल्याणकारी माना गया है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार कलश को सुख-समृद्धि, वैभव और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना जाता है। देवी पुराण के अनुसार मां भगवती की पूजा में कलश की स्थापना की जाती है।