पूजा-पाठ में या कोई भी शुभ काम शुरू करने से पहले शंख का उपयोग किया जाता है। यह आमतौर पर एक समुद्री जीव का ढांचा होता है। पुराणों के अनुसार शंख की उत्पत्ति समुद्र से मानी जाती है। साथ ही कई धर्म ग्रंथों में इसे लक्ष्मी जी का भाई बताया गया है। धार्मिक मान्यता है कि जहां कहीं भी शंख होता है वहां लक्ष्मी भी होती हैं। परंतु क्या आप जानते हैं कि शंख का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व क्या है? और पूजा-पाठ के वक्त इसका इस्तेमाल क्यों किया जाता है? यदि नहीं, तो आगे जानते हैं इसे।
धार्मिक मान्यता के अनुसार शंख को पूजा की वेदी पर स्थापित किया जाता है। इसे दिवाली, होली, शिवरात्रि, नवरात्रि सहित आदि कुछ विशेष नक्षत्रों के शुभ मुहूर्त पर स्थापित किया जाता है। वैज्ञानिक रूप से भी शंख का खास महत्व है। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि इसकी ध्वनि वातावरण को शुद्ध करता है। शंख की ध्वनि जहां कहीं भी पहुंचती है वहां के सभी किटाणु नष्ट हो जाते हैं। इसके अलावा शंख में थोड़ा चूने का पानी भरकर पीने से शरीर में कैल्शियम की स्थिति अच्छी रहती है। वहीं शंख बजाने से दिल की बीमारी और फेफड़े के संक्रमण दूर हो जाते हैं। शास्त्रों में शंख के कई प्रकार बताए गए हैं। साथ ही सब की अलग-अलग विशेषता और पूजन पद्धति भी भिन्न हैं।
आकार के अनुसार शंख के तीन प्रकार माने गए हैं। जिसमें दक्षिणावर्ती शंख, मध्यावर्ती शंख और वामावर्ती शंख प्रमुख हैं। कहते हैं कि भगवान विष्णु का जो शंख है वह मध्यावर्ती है और मां लक्ष्मी का शंख वामावर्ती है। मान्यता है कि वामावर्ती शंख को घर में स्थापित करने से धन-धान्य की कमी नहीं रहती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पूजा-पाठ के वक्त दक्षिणावर्ती और वामावर्ती शंख का ही उपयोग किया जाता है। इसके बारे में लोग शास्त्रों के जानकार ऐसा कहते हैं कि दक्षिणावर्ती शंख भगवान विष्णु की पूजा में उपयोग होता है। वहीं वामावर्ती शंख माता लक्ष्मी की पूजा में इस्तमाल शुभ है।

