रामकृष्ण परमहंस ने अपनी साधना और तपस्या से यह सिद्ध कर दिया था कि ईश्वर एक है। उसे पाने के रास्ते अलग-अलग हैं। उन्होंने मंदिर-मस्जिद गिरजाघर जैसे अध्यात्म के केंद्रों में साधना करके यह साबित कर दिया था कि सभी धर्म मानवता और ईश्वर को पाने के साधन हैं, इसलिए उन्होंने कहा था कि किसी असहाय रोगी या जरूरतमंद की सेवा करने से ईश्वर की अनुभूति होती है।

उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उनके विचारों को आगे बढ़ाते हुए कहा था कि नर सेवा ही नारायण सेवा है इसीलिए हर साल श्री रामकृष्ण परमहंस के जन्मदिन के दिन रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम के पूरे विश्व भर में स्थित चिकित्सालय और आश्रमों में रोगी नारायण सेवा की जाती है।

अस्पतालों और मठों में रोगियों को ईश्वर का रूप मानकर उन्हें तिलक लगाया जाता है। फूलों की माला पहनाई जाती है। उन्हें फल और बिस्कुट बांटे जाते हैं। रामकृष्ण परमहंस को उनके भक्तगण भक्ति भाव में ठाकुर कहते हैं। रामकृष्ण परमहंस को बाल्यकाल से ही अपनी साधना और भक्ति पर इतना अधिक विश्वास था कि उन्हें एक दिन ईश्वर यानी मां काली साक्षात रूप से दर्शन देंगी।

इसके लिए उन्होंने कठोर साधना भक्ति और तपस्या का मार्ग चुना और आखिरकार मां काली ने उन्हें साक्षात रूप से दर्शन दिए। कहते हैं कि रामकृष्ण परमहंस कलयुग के ऐसे अकेले साधक थे जिन्हें मां काली ने साक्षात दर्शन दिए। वे मानवता के सच्चे पुजारी थे। उनकी साधना इतनी उच्च कोटि की थी कि उन्होंने अपनी अर्धांगिनी मां शारदा में अपनी पत्नी के बजाय मां भाव के दर्शन किए।

वे साधना के उच्च शिखर पर पहुंच गए थे, जहां हर जीव में केवल ईश्वर के ही दर्शन होते हैं। उनकी साधना इतने अधिक उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थी कि वे एक साधक से परमहंस बन गए और उन्होंने नरेंद्र नाम के युवक में ऐसा पात्र पाया जो उनकी साधना और उनके उद्देश्यों को आगे बढ़ा सके, इसलिए उन्होंने नरेंद्र को दीक्षा और शक्तिपात करके स्वामी विवेकानंद के रूप में उच्च कोटि का साधक बना दिया।

यह कार्य केवल रामकृष्ण परमहंस ही कर सकते थे और उनके सपनों को स्वामी विवेकानंद ने धरातल पर उतारा 1 जून 1901 को स्वामी विवेकानंद के शिष्य स्वामी कल्याणानंद महाराज ने तीर्थनगरी हरिद्वार के कनखल में रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम और मठ की स्थापना की, जहां मठ में वैदिक ऋचाओं के उच्चारण के साथ चिकित्सालय में रोगियों की नारायण के रूप में सेवा की जाती है। आज रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम और मठ उत्तर भारत के सर्वश्रेष्ठ और चिकित्सालय में और मठों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम कनखल के सचिव स्वामी विश्वेशानंद महाराज बताते हैं कि 1974 में कनखल रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम मठ में ठाकुर यानी रामकृष्ण परमहंस का मंदिर बनाया गया, जहां पर ठाकुर की संगमरमर की श्वेत प्रतिमा स्थापित की गई। उसके बाद मठ के परिसर में स्वामी विवेकानंद के जन्म शताब्दी वर्ष में उनकी प्रतिमा स्थापित की गई।

श्री रामकृष्ण परमहंस जी के मंदिर में नियमित रूप से हर दिन प्रात: वैदिक मंत्रों का उच्चारण, ध्यान, साधना और नित्य पूजा और मंगल आरती की जाती है। साथ ही शाम को संत प्रवचन और सांध्यकालीन आरती की जाती है। रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम मठ की विशेषता यह है कि ईसा मसीह के जन्मदिन दिवस 25 दिसंबर की पूर्व संध्या में हर साल मंदिर के गर्भ गृह में क्रिसमस ट्री स्थापित किया जाता है। मां मेरी और प्रभु यीशु का चित्र लगाकर उनकी पूजा की जाती है और अगले दिन 25 दिसंबर को बड़े दिन के दिन प्रभु यीशु के जन्मदिन पर प्रसाद वितरित किया जाता है।

काली के उच्च कोटि के उपासक

रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर था। बचपन से ही उनको भाव आवेश हो जाया करता था। एक बार पांच वर्ष की आयु में जब उन्होंने आकाश में पक्षियों को एक कतार में उड़ते देखा तो भगवान की लीला देख भावेश हो गया और वे मूर्छित हो गए। गदाधर को रामकृष्ण बनाकर उसे परमहंस की स्थिति तक पहुंचाने वाले उनके गुरु हरियाणा की पावन भूमि के शहर कैथल के समीप गांव बाबा लदाना के एक मठ के महंत नगा बाबा महंत तोतापुरी महाराज थे, जिन्होंने गदाधर को 1865 में अद्वैत वेदांत की शिक्षा-दीक्षा देकर अपना शिष्य बनाया और उसे नाम दिया रामकृष्ण।

कनखल से रामकृष्ण परमहंस का विशेष नाता

श्री रामकृष्ण परमहंस का हरिद्वार कनखल से विशेष नाता रहा है। कनखल में 10 नाम नगा संन्यासियों के अखाड़ों में से एक प्रमुख अखाड़ा श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़ा स्थापित है और रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक संन्यास दीक्षा देने वाले गुरु महंत तोतापुरी महाराज महानिर्वाणी अखाड़ा के ही सचिव थे इसीलिए रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम मठ के साधु-संतों को हर कुंभ मेले में स्रान के लिए निकलने वाली पेशवाई में विशिष्ट स्थान दिया जाता है और उनके संत रथ में सवार होकर कुंभ स्रान के लिए पेशवाई के साथ जाते हैं।

मठ के साधु संत उच्च शिक्षित

रामकृष्ण मिशन सेवाश्रम और मठ में जो साधु संत हैं वे उच्च कोटि के विद्वान हैं और उनमें से कई तो उच्च कोटि के चिकित्सक, चार्टर्ड अकाउंटेंट, एमबीए, इंजीनियर आदि शामिल हैं जिनमें प्रमुख रूप से तीन डाक्टर स्वामी ज्ञाना अस्पानंद महाराज ( बाल चिकित्सा विशेषज्ञ डाक्टर रविंद्र महाराज),स्वामी दयाआरणवनंद महाराज (मधुमेह विशेषज्ञ स्वामी रविंद्र महाराज) और स्वामी दयाधिपानंद महाराज( डा शिवकुमार ) शामिल हैं।